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यही है जिंदगी
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आपको पाने के लिए... परंतु आपके पास आने के मार्ग अस्पष्ट हो गए हैं.... अनंत मार्गों में से आपके पास पहुँचने का मार्ग कौन-सा है ? भटक रहा हूँ.... मेरे प्राण तरस रहे हैं आपके दर्शन के लिए... कब होगा दर्शन, नहीं जानता हूँ ।
यदि मेरा धैर्य टूट गया... मेरा वीर्य खत्म हो गया... मेरा दीपक बूझ गया... तो क्या होगा मेरे भगवन् ? क्या मेरी यात्रा अपूर्ण रह जाएगी? क्या आपके पास नहीं पहुँच पाऊँगा? नहीं-नहीं, ऐसा मत होने देना । अब मृत्यु नहीं चाहिए... अब तो निर्वाण चाहिए। जो निर्वाण पाता है... वह आपके पास पहुँच जाता है!
ओ करुणासागर! यह पूरा जीवन ही तेरे चरणों में समर्पित कर दिया है, परंतु यह समर्पण तेरा सान्निध्य पाने के लिए किया है। तेरी आत्मज्योति में विलीन हो जाने के लिए किया है। कब पूर्ण होगी मेरी यह मनोकामना? कब तृप्त होगा मेरा प्यासा हृदय ?
आज मेरी आत्मा के असंख्य प्रदेशों में स्पंदन पैदा हो गए हैं... आज मेरी समग्रता आप-मय बन गई है, मेरे प्राणनाथ! आज मेरे प्राण पुलकित हो गए हैं... मन मुखरित हो गया है... जीवन धन्य हो गया है। बस, आज मेरे हृदयमंदिर में घंटनाद हो रहा है । पधारो नाथ, पधारो मेरे हृदय - मंदिर में ... और सदैव बिराजो!
बना दो मेरे हृदय को सिद्धशिला ... और सदैव बिराजो उस सिद्धशिला पर! इसको ही मैं अपनी मुक्ति मानूँगा... इसमें ही परम तृप्ति अनुभव करूँगा । कर दो कृपानिधि ! इतनी कृपा मुझ पर ...
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