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यही है जिंदगी
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१८. देखो... मगर परदा उठाकर 3
'द्रव्य' और 'पर्याय' के तत्त्वज्ञान पर चिन्तन करता हूँ, तो नया प्रकाश पाता हूँ। असंख्य विकल्पों के बबूल-वृक्षों के निबिड़ जंगल में से बाहर निकलने का मार्ग दिखाई दिया। मेरा मन नाच उठा । अभिनव उत्साह से मेरा हृदय भर गया। जिनवचन का यह अत्यंत रहस्यभूत तत्त्वज्ञान है। __ द्रव्यदृष्टि और पर्यायदृष्टि! ये दो दृष्टि खुल जाए तो बस, मुझे दूसरा कुछ नहीं चाहिए। चर्मचक्षु के बिना चल सकेगा, दिव्यचक्षु के बिना नहीं चलेगा। द्रव्यदृष्टि और पर्यायदृष्टि दिव्य चक्षु हैं।
जितने मानसिक विचार हैं, विकल्प हैं, सारे के सारे पर्यायदर्शन में से पैदा होते हैं। केवल पर्यायदर्शन! द्रव्यदर्शन के बिना केवल पर्यायदर्शन से रागद्वेषयुक्त असंख्य विकल्प पैदा होते हैं। पर्यायों का भी यथार्थ बोध नहीं! मैंने कितने राग-द्वेष किये? कितने-कितने पापकर्मों के बंधन मोल लिए? यदि मुझे द्रव्य और पर्याय का तत्त्वज्ञान बाल्यकाल से मिल जाता तो...?
समग्र विश्व क्या है? जीवद्रव्य और पुद्गलद्रव्य का संयोग। इस अनादि संयोग का वियोग हो जाए तो आत्मा परमात्मा बन जाए! परन्तु जीवद्रव्य का यथार्थ बोध चाहिए, जीवद्रव्य के अनंत पर्यायों का बोध चाहिए | पुद्गलद्रव्य का और उसके अनंत पर्यायों का ज्ञान चाहिए। इस ज्ञान से ही प्रगाढ़ मोहवासनाओं का विनाश हो सकता है। द्रव्य की भिन्न-भिन्न अवस्थाएँ ही तो पर्याय हैं। मैं उन अवस्थाओं को ही देखता हूँ और उन पर विचार करता हूँ। मुझे ज्ञान ही नहीं था कि अवस्था हमेशा परिवर्तनशील होती है। अवस्था शाश्वत नहीं हो सकती, अविनाशी नहीं हो सकती। द्रव्य की अच्छी अवस्था देखकर मैंने अनुराग किया, बुरी अवस्था देखकर विद्वेष किया। ___ मनुष्यत्व क्या है? आत्मा की एक अवस्था! देवत्व क्या है? आत्मा की एक अवस्था! नारकत्व और तिर्यंचपन भी अवस्थाएँ ही हैं | मानवजीवन के अवान्तर पर्याय हैं - बाल्यकाल, यौवनकाल... वृद्धत्व आदि । अवस्थाएँ बदलती रहती हैं, द्रव्य स्थिर रहता है - एक-सा रहता है।
स्वर्णहार क्या है? सोने का एक पर्याय! स्वर्णकुंडल... स्वर्णकंगन... इत्यादि क्या है? पर्याय! जो कुछ हमें आँखों से दिखता है, कानों से सुनाई देता है, जिह्वा रसास्वाद करती है, चमड़ी स्पर्श का अनुभव करती है और नासिका
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