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यही है जिंदगी
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अब मुझे इस संसार से कुछ भी नहीं पाना है । पाने जैसा है भी क्या ? किसी ने कुछ नहीं पाया संसार से । मृगजल से जल किसने पाया ? अब तो पाना है आत्मा में से । पाना है परमात्मा से अक्षय और अविनाशी को पाना है । शाश्वत और अनंत को पाना है। यह पाने के लिए जो भी त्याग करना है, करूँगा। जो स्वीकार करना है, करूँगा।
जानता हूँ, यह मार्ग दुर्गम है । परन्तु इस मार्ग पर चलना ही है। तीव्र गति से न सही, मंद गति से चलूँगा। जानता हूँ कि यह मार्ग भी संसार में से ही गुजरता है। आशा और कामनाओं के आन्तरिक आक्रमण आयेंगे... परन्तु फिर भी चलना है। आक्रमणों से डरना नहीं है, उनसे लहूँगा । जय हो या पराजय, लड़ते-लड़ते मरूँगा ।
यह तो अंतरात्मा का दृढ़ निर्णय है कि आत्मा में से ही परम आनंद और अनंत समृद्धियाँ मिल सकती हैं। कलिकालकेवली श्री उपाध्याय यशोविजयजी ने सच ही कहा है :
अंतरेवावभासन्ते स्फुटाः सर्वाः समृद्धयः ।
सर्व शाश्वत समृद्धियाँ अंतरात्मा में से ही प्रकट होगी । संसार से कुछ नहीं। संसार मिथ्या है। आत्मा ही सत् है, परम सत् है, पारमार्थिक सत् है।
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