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न्यायार्थमंजसा ॥ २५० ॥ मन:प्रसखा स्वा सादामयहितः । खल्लालकस्य र यो योर्मध्ये मुनिःसरेत् ॥ २५१ ॥ स स्यादा | पति ने निर्गतं तं व्यताइयत् ।। २५२ ॥ (षट्पदी) पूर्वस्मै हलिने इत्या भद्रामभपपंडितः । सहिनादिसिद्धोऽभूत् न्यायी सप्रतिभः प्रदः ।। २५३ ॥धणिकोक्तं समाकये कूपातपतितां शुभां। निष्कास्य मुद्रिका बुनपा प्रसिद्धोऽभूद्विशेषतः ॥ २५४ ॥ अथैकदाऽमरा. पत्यां चित्रकदरताभिधः । पभावी महाविद्या साधयामास सबने । २५५ ।। प्रसिद्धीभूयमागत्य प्रायोचत्फणिशेखरा । याचस्व त्वं वर घत्स ! मनोऽभीष्टं यथावचि ।। २५६ ॥ भुत्वाऽ योचन्महामातहि मे चित्रशुद्धता । यया (4) शुद्धया भवेसिद्धिर दृष्टं लिख्यते समान रूपके धारक थे इसलिये दोनोंका आपसमें झगड़ा होने लगा इसलिये अपना न्याय कराने के लिये चलते चलते वे राजगृह नगर मा गये ॥ २४८ ।।-२५० ॥ सब झगड़ोंका निवटेरा प्रायः कुमार अभय ही करते थे जिससमय वे दोनों कुमारके पास आये, मनको प्रसन्नकर कुमारने कहा देखो भाई। तुम दोनोंमेंसे जो इस तूंवीके छेदमें होकर बाहर निकल जायगा वही भद्राका पति समझा जायगा। यह काम करना असली बलभद्र की शक्तिके तो बाहिर था कुमारकी बात सुनते ही नकली पलभद्र वसन्त देखते देखते छेदमें घुसकर बाहिर निकल गया वस कुमारने उसे ही
अपराधी समझ पकड़ लिया और दण्ड दिया ॥ २५१–२५२ ॥ कुमार अभयने अपनी बुद्धिकी । | चतुरतासे असली बलभद्र को भद्रा देदी । इस न्यायके वाद कुमार अभय अत्यंत बुद्धिमान प्रसिद्ध ko | न्यायी माने गये ॥ २५३ ॥ किसी दिन जलरहित कूवमें एक अङ्गठी गिर गई महाराज श्रेणिकने । विना किसी लागके कुमारको निकालनेके लिये आज्ञा दी कुमारने अपनी बुद्धिमानीसे विना किसी
लागके उसे बाहिर निकाल दिया इसलिये कुमारकी उस दिनसे और भी विशेष प्रसिद्धि हो गई।२५४॥ ज अमरावती में उस समय एक भरत नामका चित्रकार भी रहता था एक दिन जंगलमें जाकर | Id उसने महाविद्या सिद्ध करनेके लिये पद्मावती देवीकी आराधना की। जिससमय वह विद्या सिद्धल
हो गई तो नागोंका मुकुट थारणकर वह प्रत्यक्ष हुई और स्नेहमय वचनोंमें इसप्रकार कहने लगी
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