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ऽपिताः ॥ २६ । पोपयासमादार स्वास्थध्यानपरायणः । चतुयज्ञानसंयुक्तो वभूधाधु हि तत्क्षणे !!३. ॥ बर्वते नन्दनाभिल्यं पुर' परमपावनं । तत्राचनपतिधीमान् विजयाख्यो महर्द्धिकः ॥ ३१॥ पारणार्थं द्वितीयेऽकि समाट तह शिनः । स्वर्णाभस्तेजसा संघः कल्पद्रम इवापरः ।। ३२॥ दृष्ट्वा जिन समुसस्थे परीत्य प्रणनाम सः । इति स्तौतिस्म सदामात्यांजछिः वर्महानये ॥ ३३ ॥
भग्राहं सुकृतीभूतो जातस्तव समागमात् । मादृशां श्रुत्लोकानां कुतो लोकेश्वरागमः ॥ ३४ ॥ सन्ममृत्युजराबहितापातुरिठयक्षुषः । बने बड़े ठाट वाटसे भगवान विमलनाथ के दीक्षा कल्याणका उत्सव मनाया। भक्ति पूर्वक उनको
स्तुति की। नमस्कार किया एवं सबके सब बड़े आनन्दसे अपने अपने स्थान चले गये ॥ २६ ॥ दीक्षा ग्रहण करते समय भगवानने षष्ठोपवास--बेला धारण किया आर वे अपनी आत्माके स्वरूपके र चिन्तवनमें लीन होगये जिससे उनके उसी क्षणमे मनःपयंय नामका चौथा ज्ञान प्रगट होगया ॥३०॥
इसी पृथ्वीपर एक नन्दन नामका महा मनोज्ञ पुर विद्यमान है उस समय उसका पालन करने का वाला राजा विजय था जो कि अत्यन्त बुद्धिमान था और विपुल सम्पत्तिका खामी था ॥३१॥ वेलाय | उपवासके समाप्त हो जाने पर दूसरे दिन वे भगवान विमलनाथ राजा विजयके घरपारणाके निमित्त
आये । भगवान विमलनाथका शरीर सुवर्णमयी था और देहकी अद्वितीय प्रभासे व्याप्त था इस लिये वे चलते फिरते अनुपम कल्पवृक्ष सरीखे जान पड़ते थे ॥३२॥ भगवान जिनेन्द्रको आहारके लिये अपने घर आता देख राजा विजयको परमानन्द हुआ। भगवानको देखते ही वह शीघ्र |
खड़ा हो गया। तीन प्रदक्षिणा देकर नमस्कार किया एवं हाथ जोड़कर भावोंकी पवित्रतासे अपने | | कोंके नाश करनेके लिए वह इस प्रकार स्तुति करने लगा- . 15 भगवन् । आपके शुभ आगमनसे आज में पवित्र होगया क्योंकि आप तीन लोकके नाथ हैं | lar इस प्रकारके महान् पुरुषका मुझ सरीखे क्षुद्र पुरुषके घरमें आना बड़ी कठिनताका कार्य है ॥३३--
३४॥ जन्म मरण और जरा रूपी तीनों प्रकारकी अग्नियोंके संतापसे संतप्त मेरे लिये हे भगवन् ।
KAYE KHEREYENESE HEEREY KAYERA KEFENSNEHA
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