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नव ५२
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श्रीमान, महातेजाः सुतो बीतभवायः ॥ ६ ॥ रत्नायुधोऽपि तम्बाका युस्था तस्यैव भूपतेः । प्रियायां जिन सुतोऽजनि बिश्रीयणः || ७ || देवरादौ तो वीतभीकविभूषणौ । अज्ञाते पुण्यतो राज्यं भोजयामासतुश्विरं ॥ ८ ॥ मृत्वा विभीषण राजा केशयत्वाद्रतः शिविं । द्वितीयायां महेनोमिरासमोस्यैश्व दुस्त्यजेः || || बलदेवोडिय तह विर स्वातिमीहतः । व्यवस्था राज्य निवृस्पते संयमं प्राप पुण्यधीः ॥ १० ॥ दुष्करं स तपस्तप्त्वा छांतवासयं दिषं ययौ । आदित्याने विमानेऽभूदित्याः सुरोत्तमः ॥ ११ ॥ अच्युत स्वर्गमें जाकर देव हुआ था राजा भर्हदासके रानी सुव्रतासे उत्पन्न वीतभय नामका कुमार हुआ जो कि बुद्धिमान था उम्र तेजका धारक था। राजा पूर्णचन्द्रका जीव रत्नायुध जो कि मरकर अच्युत स्वर्ग में ही देव हुआ था आयुके अन्तमें वहांसे चयकर उसी राजा भर्हदास के जिनदत्ता नामकी रानीसे उत्पन्न विभीषण नामको पुत्र हुआ था ॥ ६-७ ॥ इन दोनों कुमारोंमें कुमार atar बलदेव था और विभीषण नारायण था । ये दोनों ही बलदेव और केशव पदवियों के धारक कुमार समस्त भयोंसे रहित थे। कवियोंके भूषण थे और पूर्व पुण्यके उदयसे सानन्द राज्य | का भोग करते थे ॥ ८ ॥ राजा विभीषण जो कि नारायण पदका धारक था मरकर अनेक प्रकार के. | श्रारम्भोंसे जायमान घोर पापों के द्वारा दूसरे नरकमें जाकर नारकी होगया ॥ ६ ॥ नारायण बिभीषणके मरने से बलदेव वीतभयको बड़ा दुःख हुआ। मोहके तीत्र उदयसे भाई के मर जाने के बाद उसने राज्यका परित्याग कर दिया और संयम धारण कर लिया ॥ ६-१० ॥ पुण्यात्मा वीतभय वलदेव ने घोर तप तपा जिससे वह लांब स्वर्ग के आदित्याभ नामक विमानमें श्रादित्याभ नामका उत्तम देव होगया ॥ ११ ॥ प्रिय जयन्त मुनिके जीव नागेंद्र वही में आदित्याभ नामका इस समय देव हूं। अपने पूर्व जन्मके भाई नारायण विभीषणको नरकमें अवधिज्ञानके द्वारा दुःखी देख एक दिन मैंने यह विचार किया --
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