Book Title: Vimalnath Puran
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 355
________________ मुञ्च बेरमहीनास्मिन् विद्युइंद्रश्च मुच्यतां । इति देवघयोवृष्ट्या ययौ शांति' फणीश्वरः ॥ ३८ ॥ ऋतोक्तौ सुखमायाति सज्जनों न स्खलो विधीः । अहोदये सो मुदं याति न कोकभित्॥ ३६॥ देवाह त्वत्प्रसादेन सद्धर्म श्रद्धये स्म मोः। किंतु विद्यापलादेव विद्यु हष्ट्रोऽघमावरत् ॥ ४ ॥ तस्मादस्यान्वयस्येव महाविद्यां छिनम्यहं । इत्याहैतद्वचः श्रुत्वः सुरो मदनुरोधतः ॥ ४२ ॥ त्वया द्विधातव्यमित्याख्यत्फणिनां पति । श्रादित्याभवचः श्रुत्वाब्रवीदिति पुनः फणीट ! ॥४२॥ ययेव ताई चश्मानांमेतस्यैव कुकर्मणा । प्रिय ओदित्याभ ! में भी यह मानता हूँ कि जिसप्रकार सूर्यके उदय होने पर हंसको आनंद होता है उस प्रकार उल्लू को आनन्द नहीं होता उसी प्रकार सत्य बोलनेसे सजनोंको ही परमानन्द प्राप्त E होता है दुर्बुद्धि दुष्टको नहीं ॥३८॥ भाई आदित्याभ ! मैं तुम्हारे वचनोंसे परम पावन जैन धर्मका श्रद्धान करता हूँ परन्तु इस दुष्ट निशुपाने लापनी विचारला घमण्ड कर यह दुष्पाप किया है इस लिये मैं कुल परम्परासे प्राप्त इसकी समस्त विद्याका उच्छेद करूंगा। थरणेंद्रकी यह बात सुनकर विद्याधर आदित्याभने कहा भाई धरणेंद्र ! मेरे अनुरोधसे तुम्हें इसकी विद्यायें नहीं छेदनी चाहिये । आदित्याभके इस प्रकार वचन सुनकर पुनः धरणेंद्रने कहा यदि तुम इसकी कुल परम्परा प्राप्त विद्याओंके छेदनेकी मना करते हो तो मैं स्वीकार करता परन्तु में यह शाप देता हूं कि इस विद्युद्दष्ट्र के कुकर्म के कारण इसके जितने वंशके पूरुष हों, उन्हें मुनिराज संजयन्तको विना आराधना किये किसी भी विद्याकी सिद्धि मत हो तथा जिस Jan चतुर्दशीको मेरे भाईने मोक्ष प्राप्त की है उस तिथिको बिना आराधे किसोको भी मोक्ष पदकी प्राप्ति मत हो, मालुम होता है इसीलिये चतुर्दशीको विशिष्ट पर्वका दिन माना है। भाई ! इस शापक देनेका मेरा तात्पर्य यह है कि यदि में ऐसा शाप न दूंगा तो ये क्रूर हृदयके धारक पापी विद्या RREART ENAYANAVRATRIKA MirmETNHIADMIND

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