Book Title: Vimalnath Puran
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 360
________________ MaghvarsJsRY विधुर्श विहन्गसौ ॥७२॥ असंख्यातसुरैरर्व्यः केवलज्ञानभास्करः । चतुर्विधमहासंघलमे तोविजदार सः ॥७अवंगे तिलिंगे मगर, जनपदे सिंधुदेशे विराटे । कर्णाटे कुकुणाख्ये कुल्लमुरुमहाभोटभोरेषु याये । काश्मारे लाटगोडे गिरवर (न) गहने मेट सटे जिने । पारस्थे मालवे वा व्यवहरदिति महामोघहतोर्जनानां ॥ शेषायुषि स्थिते तस्य मासैकस्य जिनाधिपः । सामेहावलमासाद्य विसर्ज समाश्रियं ॥५॥ आषाढस्योत्तराषाढ कृष्णाष्टम्पः निशामा । सद्यः कृत्वा समुद्धातं सूक्ष्म शुसमाश्रितः ॥६॥ साम्ययोगादयोगः सन् स्वास्थ्य रोगीय सोऽगमत् । तदा प्रभृति लोकेऽस्मिन् पूज्या कालाष्टमो धुः ॥ ७७ ॥ विश्वद्गश्या जिनो मोक्षमापविमलोऽमला उस समय वे मुनिराज मेरुके समान निश्चल और ध्यानमें लीन रहते थे ॥ ६८-७१॥ तपके / Kा घोर रूपसे आचरने पर मुनिराज मेरु और मन्दिरको सातों ऋद्धियां और चौथा मनः पर्यय ज्ञान 12 प्राप्त होगया और वे निभय हो पृथ्वी पर विहार करने लगे। ७२ ॥ जिस प्रकार अनेक ताराओंसे 5 ज्याप्त चन्द्रमा शोभायमान जान पड़ता है उसी प्रकार वे भगवान विमलनाथ साढ़े पांचसौ केवलज्ञानी ke मुनियोंके साथ विहार करते हुए अत्यन्त शोभायमान जान पड़ते थे॥ ७३ ॥ भगवान विमलनाथ * को सेवा असख्याते देव करते थे और वे केवल ज्ञान रूपी सूर्यसे देदीप्यमान थे। भगवान विमल नाथने मुनि आर्यिका श्रावक श्राविका इस प्रकार संघोंके साथ पृथ्वी पर बिहार करना प्रारम्भ कर दिया ॥७४ । उन भगवान विमलनाथने मोक्षाभिलाषी भव्य जीवोंके संबोधनेके लिये अङ्ग बहर * तेलंग मगध सिंधुदेश विराट कर्णाटक कुकण पुरु महा भोट भोट काश्मीर लाट गौड़ मेढ़ पाट | फारस मालवा आदि देश जो कि पहाड़ और वनोंसे सघन थे उनमें भ्रमण किया ॥ ७५ ॥ जब भगवान जिनेंद्रकी एक मासकी केवल आयु अशेष रह गई वे तो सम्मेदाचल पर्वतपर आ विराजे और समवसरणको विभूतिसे रहित होगये ॥ ७६ ॥ आषाढ़ मासको बदो अष्टमोके दिन जब कि उत्तराषाढ़ नक्षत्र विद्यमान था उन्होंने केवल समुद्धात माढा । सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाती नामक शुक्ल

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