Book Title: Vimalnath Puran
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 392
________________ PRERPR भजत मेमल' मुदा ॥ १६७ ॥ विख्याते जगतीतले त्रिभुवनस्वामिस्तुतेऽभून्महान् काष्ठासंघसुनामनि प्रभुतौ विद्यागणे सूरिराट् ! सा गार्णवपारगो विधुयशाः श्रीराम सेनोजिना न्यानाणों बितति तजिनी भानुस्वमोराशिषु ॥ १६८ ॥ तत्क्रमेण गणभूधरभानुः सोम कीर्तिरिय शीतमयूखः । संबभूव जनताशि स्वभुक्षु नागनाथदयिताकृततेजाः ॥ १६६ ॥ तत्पदे विजयसेनमदन्तो वोधिता खिलजनः कमनीयः । फोर्तितिकमलाजलराशिः संबभूव विजयी कुमतीनां ॥ २०० ॥ तत्पट्ट सूरिरामः सकलगुणनिधिः श्रीयशः कीर्तिदेव स्तत्पादाम्भोज षट्पात्सकलशशिमुक्षो वादिनगेन्द्रसिंहः । संजज्ञे प्रांतसेनोदय इति वचसां विस्तरे संप्रवीणः, तत्पद्वार्जालिशक स्त्रि जो कि समस्त गुणों के भगदार थे। भट्टारक यशः कीर्त्तिके चरण कमलों में भ्रमर स्वरूप एवं अखण्ड चन्द्रमा के समान मुख से शोभायमान वादी नागेन्द्र सिंह नामके भट्टारक हुए । उनके शिष्य उदय सेन नामके भट्टारक हुए जो कि सिद्धांत के पूर्ण ज्ञाता और व्याख्याता थे उनके वाद आर्य उदयसेनके चरण कमलोंके सेवक एवं तीनों लोकमें जिनकी महिमा गाई जाती थी ऐसे भहार त्रिभुवन कीर्त्ति हुए ॥ १६८ ॥ भहारक त्रिभुवन कीर्त्तिके शिष्य भट्टारक रत्नभूषण हुए जो कि पृथ्वी तलपर चन्द्रमाके समान स्वच्छ प्रकाशके धारक थे। भट्टारक त्रिभुवन कीर्त्तिके पट्टरूपी उदयाचल पर्वतके लिये सूर्य स्वरूप थे । तर्क नाटक आदि शास्त्रोंके रहस्य के पारगामी थे और कवियों में राजा स्वरूप थे ॥ १६६ ॥ इसी पृथ्वीपर लोहार नामका एक पुर है उसमें एक हर्षनामके महानुभाव रहते थे जो कि पुरवासियों में प्रधान माने जाते थे । महानुभाव हर्षकी स्त्रीका नाम वीरिका था जो कि एक सज्जन arrant थी गुणोंकी स्थान थी एवं साध्वी थी माता वीरिकाका पुत्र मैं (ग्रन्थकार ) कृष्णदास था जो कि सुन्दरता में कामदेव के समान था । पूर्ण ब्रह्मचारी था सुन्दर किर्तिका धारक था एवं भगवान ऋषभदेव के चरण कमलोंमें भ्रमर स्वरूप था ॥ २०० ॥ मेरे छोटे भाईका नाम मंगल

Loading...

Page Navigation
1 ... 390 391 392 393 394