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सर्वार्थसिद्धिमासाध तस्थौ पुण्यानमहोदयः ॥ १७खेचरोऽपि यथाशक्ति तपः कृत्वा सुरालये । पञ्चभूत्सुर सेव्योरंभाभिललिता भिधः ॥ १८८ ॥ तमः कुर्वे ति ये भव्यास्ते लभते तो श्रियं । स्वों हांगणे तेषां कामधेनुश्च किंकरो ॥ १८६ ॥ बभूवुः पञ्चपञ्चाशनणा; श्रीविमलेशिमः । शतोचरसहस्रोक्ता मुनयः पूर्वधारिणः ॥ ११० । मद्धिपश्चाष्टत्रिसंख्या आसन् शिष्या गुणोज्वला: । खद्वयाष्ट चतुर्मेयानिषिधावयय: स्फुट ॥१६१॥ अष्टषष्टिसहस्रोक्ताः सर्यसमिनः परः । लिसह फलक्षोक्ताः पाया आर्यिका मतः ॥१२॥
जो महानुभाव तप आचरण करते हैं उन्हें अदभुत लक्ष्मीकी प्राप्ति होती है। स्वर्ग उनके घरके आंगन प्राप्त हो जाता है और कामधेनु किंकरी बन जाती है ।। १८६ ॥ र भगवान विमलनाथके पांच सौ तो गणधर थे। ग्यारह सौ पूर्वधारी मुनि थे । अड़तीस हजार !!
पांच सौ शिष्य थे। अडताखीस सौ देशावधि आदि अवधिज्ञानके स्वामी थे। पचपन सौ केवल ज्ञानी, छत्तीस सौ वादी मुनिराज, अड़सठ हजार संयमी मुनि, एक लाख तीन हजार आर्यिका दो लाख श्रावक और चार लाख श्राविका, नौ हजार बिक्रिया शुद्धिके धारक, पांच हजार पांच सौ मनःपर्यय ज्ञानी और असंख्याते देव इस प्रकार सबोंसे युक्त भगवान विमलनाथ अत्यंत शोभायमान जान पडते थे॥ १६०--१६२ ॥ ___ जो भगवान विमलनाथ बाह्य अभ्यन्तर दोनों प्रकारकी लक्ष्मोके स्वामी हैं । कल्याणके | प्रदान करनेवाले हैं जीवोंके हितकारी हैं। कर्मरूपी कीचड़को सुखानेके लिये सूर्य स्वरूप हैं उन |
भगवान विमलनाथको मैं बार बार नमस्कार करता हूं ॥ १२ ॥ पद्मसेन नामके जो राजा थे वे IN वारवे स्वर्गके देवोंके स्वामी सहस्रारेंद्र होगये । केवल बिभतिके नायक वे भगवान विमलनाथ हमारी * रक्षा करें। जो भगबान विमलनाथ भव्य रूपी कमलोंके लिये सूर्य समान हैं। मोह रूपी हस्तीके
लिये सिंह स्वरूप हैं एवं देव इन्द्र स्वरूप चकोर पक्षियोंके लिये चन्द्रमा स्वरूप हैं अर्थात् हृदयका
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ISANELAYERNETER