Book Title: Vimalnath Puran
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 391
________________ द्विलक्षश्रा का मौका द्विगुणा श्राधिका मताः । खबरनवसंस्थाश्वः विक्रियाद्धविराजिताः ॥ १३ ॥ खवयेंद्रियपञ्चोक्ताः पूर्णतुर्याव योधनः । असंख्यातामरैरच्यों रराज विमलो जिनः ॥ १६॥ श्रीमत परमशर्मदायिने नेकजल्लहितक वयेष से नमः श्रीजिनाय विमलाय निर्दिव।।१९५॥ पद्मसेनजगतीपतिस्ततो द्वादशामरनिवासपोऽजनि | यस्तु केवलविभूतिनायकः पातु नः स विमलोऽमलः सदा ॥ १६ ॥ भव्यपादियामणि हरि मोहवारणतता कलानिधि । निर्जरेशशिस्त्रिभुक्ततौ श्रिये भोजना उत्ताप मिटानेवाले हैं प्रिय भव्य जीवो उन भगवान विमलनाथकी कल्याणको प्राप्तिकी अभिलाषा से तुम्हें सदा सेवा करनी चाहिये ॥ १६३–१६४॥ प्रशस्ति न जो काष्ठासंघ समस्त पृथ्वी पर प्रसिद्ध है तीनोंलोकके स्वामी जिसकी स्तुति करते हैं । जिसमें अगणित मुनि होचुके है एवं जिसमें अनेक विद्याओंका समारोह रहा है उसमें एक ग़म| सेन नामके भट्टारक हुए जो कि आचार्यों में राजा म्वरूप थे सिद्धान्त रूपी समुद्रके पारगामी थे। चन्द्रमाको समान कीर्तिसे शोभायमान थे। ध्यान रूपी जलके प्रवाहसे पाप रूपी संतापके दूर करनेवाले थे और अन्धकारके लिये सूर्य स्वरूप थे॥ १९५॥ उसी काष्ठासंघमें आचार्य रामसेनके Id बाद भट्टारक सोमकीर्नि हुए जो कि मुनि आदिके गण रूपी पर्वतके लिये सूर्य स्वरूप थे। मनुष्य रूपी चकोर पक्षियोंके लिये चंद्रमा स्वरूप एवं जिनकी कीतिका गान नागकुमारियां करतीं | थीं।आचार्य सोमकीर्त्तिके पद पर विजयसेन नामके भट्टारक हुए जो कि समस्त जनोंको वास्तविक hd ज्ञान प्रदान करनेवाले थे। कीर्ति कांति रूपी लक्ष्मीके लिये समुद्र स्वरूप थे और कुबुद्धियोंके विजेता थे ॥ १६७ ॥ भट्टारक विजयसेनके पदपर आचार्योंमें प्रधान श्री यशःकीर्ति नामके देव हुए सरकार

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