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तल्लोकते यदा। भदृष्ट्वा मोहतो भूमौ मूर्खया पतितो नप !॥१५२॥ मृत्था जाई महाव्यालो निधाने मोहकर्मतः । एकदा रि मानेतु याति तवतु॥१५३ ॥ मद मंद चखानेलां यदा गत्वा तदा फणी। ददशारिजय कोपात विर्षाधः सो तेन साहसः कोधादनौ यगपन्निधन' गतौ । अथान भारत द्वीपे चोचरा मथरा परी ।९५५|| जाते तो चणिकपको तत्र भद्राभि
मिधौ । दुर्गती विमतो दुष्टौ विरूरी विगतनपी ॥ १५६ ६ अन्यदा मगधे राष्टे वाणियार्थं च तो गतौ। तदा सपंचरोभन्स्ततति is अरिजय और सर्प दोनोंके जोव उसके दो पुत्र होगये जो कि महा दुष्ट थे मैंले कुचले थे
दरिद्र और निर्लज थे एवं दोनोंका नाम भद्र और हर था ॥ १५२---१५६ ॥ एक दिन वे दोनों मगध राज्यमें व्यापारके लिये गये उस समय पापी और टग सर्पका जीव भद्र अपने मनमें यह
विचारने लगाKE रात्रिके समय जघ हर सो जाय उस समय मुझे हरको मार देना चाहिये और सारा धन
अपने घर ले जाना चाहिये । बस ऐसा पूर्ण विचार कर वह ठीक आधी रातके समय उठा। हरके धोकेमें एक दूसरे पथिकको मार डाला एवं वह मूर्ख अपने घर चला गया । प्रातः काल होते हर उठा । अपने पासके मनुप्यको मरा देख वह एक दम भयभीत होगया। एवं इस प्रकार
मनमें विचारने लगा5 अवश्य मेरे भ्रमसे मेरे भाईने इस पथिकको मारा है, यदि में ठहरू गा तो लोग मुझे ही Ke इसका मारनेवाला समझेगे जिससे संसारमें मेरा ही अपवाद होगा। यह नियम है कि दुष्टोंके -
साथ संवन्ध करने पर मनुष्यको चिरकालसे संचित भी कीर्ति नष्ट हो जाती है तथा बन्धन ताड़न विशेष क्या मृत्युका भी सामना करना पड़ता है। वस ऐसा विचार कर हर शीघ्रही वहांसे चल | दिया एवं बुद्धिमान वह इसप्रकार अपने मनमें सोचने लगा
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