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तपापाप
या श्रीमनपुरा ८० श्री रतभूषणाम्नायालंकारविद्वज्जनचातुरी समुद्र कुमुदबांधवा पतारोमयमात्राचक्र सिंह पंवारिकान्वयो मानसराजहंसब्रह्मकृष्णदासविरचिते ब्रह्ममङ्गलदाससाहाय्यसापेक्षं श्रीमेस्मन्दिरदीक्षाप्रणश्री विमल मानिर्वाणगमनो नाम नवमः सर्गः ॥ ६ ॥
भगवान विमलनाथने भव्य रूपी कमलोंको खिलाकर सम्मेदाचलसे मोच प्राप्त की है इसलिये सूर्यके समान भगवान विमल नाथ हमारी रक्षा करें ॥ ८१ ॥ जिन भगवान विमलनाथने समस्त जीव लोकको संबोधा । जो मोहरूपी पर्वतके लिये वज्र स्वरूप हैं । शुद्ध समाधि - अपने आत्म स्वरूप में निश्चल हैं। केवल ज्ञानरूपी लोचनके धारक हैं और जो स्वयं भी ब्रह्मासे अर्चित हैं उन भगवानने परम पद प्राप्त कर लिया ऋतः वे हमारे कल्याणके कर्त्ता हों ॥ ८२ ॥
इसप्रकार भट्टारक रत्नभूषणकी आम्नायके अलंकारस्वरूप विद्वज्जनोंकी चतुरता रूपी समुद्रके लिये चन्द्रमा दोनो भाषाके hadi एवं इर्ष वरिकाके कुलरूपी मानसरोवरके राजहंस ब्रह्मकृष्णदासद्वारा अपने छोटे भाई
मंगलदासकी
सहायताले रचे गये बृहद्विमलनाथपुराणमें राजा मेरु और मंदरकी दीक्षाका ग्रहण और
भगवान विमलनाथका निर्वाण गमन वर्णन करनेवाला नववां सर्ग सनात हुआ ॥६॥
दशवा सर्ग |
पुन्नपनपत
*HAYAYAYA
अथाजग्मुः सुनासोरा व्योमश्रानस्थिता मुदा । विमलेशस्य निर्वाणकल्याणकसमुत्सुकाः ॥ १ ॥ धनुर्णिकायदे वालिनिय यो भगवान विमलनाथ के निर्वाण प्राप्त करलेने पर उनके कल्याणके उत्सव मनानेके लिये लालायित समस्त इन्द्रादि देव अपने विमानोंपर चढ़कर शीघ्र ही सम्मेदाचतकी ओर चल दिये ॥ १ ॥
DAYANAN