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क्रियतेऽस्माभिमुह्यता मीनपेतुभ । देवागार नपागार युक्त तदयं पुनः॥ ११६ ॥राज्ञा नीत्या शौ सिंधुस्वामिने सौहदावलु। स ऽपि नीत्वा निज धाम गंतुकामो कपाज्ञया । १९७॥ चचाल चतुरंगेण बलेनामा यदा तदा । पलं मत्वाध भेरुण्डो गृहीत्वैट्गनांगणे ॥ ११६॥ सिंधुराज सैब मोचिता सागरेऽपतत् । यदा निष्कास्यते मृत्यैस्तन्मध्यस्थो जगाविति ॥ ११६ ॥
कच्छा ताधषणा जोइपणा पण्डिया च सहपवरा । तयण्णादरदिया इच्छकडक्खे हि णो भिषणाः ॥ १ ॥
राजभृत्याश्च भीशीता गल्या नरपतेः पुराव्याचरतिस्म भो वेव! मंजूषेय मजल्यति ॥ १२०॥ किंयक्ति प्रत घेगेन गाथा का ख्याता तदा प तैः । श्रुत्वा धरापतिः प्राह भो भो भृत्या निशम्यतां ॥१२॥ केन घिविदुषा पुसा वर्ततेऽधिष्ठिता शुभा । अतो वेगेन सा
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HS लाया था उसे मैं आपकी भेंट कर रहा हूं क्योंकि देव मंदिर वाराज मन्दिरमें ही इसका होना युक्त
है राजाने उसे सिंधुराज नामक व्यक्तिको देदिया वह भी राजाकी आज्ञासे उसे लेकर चतुरङ्ग सेनाके
साथ अपने घरको ओर चल दिया एवं आगनमें आकर वह संदूक उसने रखवा दी, उस समय भेरुण्ड IME नामका पक्षी आकाशमें उड़ रहा था उसने वह संदूक मांसका लोदा जाना इसलिये वह चूचसे । PC उठाकर आकाशमें उड़ा लेगया। सिंधुराजके नोकरोंने बड़ी कठिनतासे उसे छुटाया तथापि वह समुद्रके अन्दर जाकर पड़ गई। सेवक जब उसे निकालने लगे तो उसके भीतरसे यह शब्द निकला
रुद्रके सिवाय सभी मनुष्य संसारमें कृतार्थ हैं धन्य योगी पंडित बुद्धिमान तत्वोंके जानकार और स्त्रियोंके जालमें नहीं फसनेवाले हैं केवल रुद्रही इनसे विपरीत और दुष्ट हैं" संदूकके से भीतग्से इस प्रकार शब्द सुनकर राजाके जितनेभर भी सेवक थे मारे भयके व्याकुल होगये दौड़ते दौड़ते शीघ्र ही वे राजाके पास पहुंचे और इस प्रकार कहने लगे-स्वामिन ! जिस संदूकको Re अपन ले गये थे वह संदूक बोलती है ॥ ११५---१२२ ॥ सेवकोंसे यह समाचार सुन राजाको भी वड़ा आश्चर्य हुआ। इसलिये शीघ्र ही उसने पूछा-संदूक क्या बोलती है ? सेवकोंने जो गाथा
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