Book Title: Vimalnath Puran
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 357
________________ - - H ERE 4 - m - - - - -B -4 him A M ॥५१॥ शेलदया क्षिपत्योन सार्वज्ञानामधापरे गादाजी राति गाहातटे भिया ॥५२॥ तत्रार्यों भाति सत्य पडः स्वर्गबण्ड वापरः । अस्ति तलोत्सरा नाम्ना पुरी श्रीमथुरा नपः ॥ ५३॥ तंपात्यनन्तवीर्याख्यो राजा सिंहपराक्रमः चन्द्रास्या वर्तते तस्य नाम्ना स्त्री मेहमालिनी ।।५४॥ द्वितीया सुन्दरी सस्य रोहिणोव चकोरट्क । आस्ते मितवती नाम्ना नामेवामरसुन्दरो ५५ क्षादित्यामस्त तश्युत्वा पूर्वोक्तायामभूत्सुतः । नाम्ना मेरुः प्रभीवासी तिग्मांशः कुलभूधर ॥ ५६ ॥ धरणेद्रोऽपि पुत्रोभन्मन्दराख्यो महायशाः । द्वितीयायां सुतौ सौ च सूर्याचन्द्रमसाविध ॥ ५७ ॥ इत्थं विमलनाथस्य मुग्लाजान्मेरुमन्दरौ । स्वभवांस्ती समाकण्यं घेराग्य प्राप छह खंडोंसे शोभायमान है एवं गङ्गा सिन्धु नामको दोनों नदियोंकी तरंग रूपी भूषणोंसे शोभा. l यमान है ॥ ५१ ॥ प्रलय कालके अन्तमें जब भरत क्षेत्रके किसी एक खण्डका प्रलय होता है उस समय हीसन्त पर्वतका स्वामी देव हर एक गर्भज जीवके बहत्तर २ जोड़ा लेकर उस होमन्त पर्वतको गुफामें रखता है तथा और बहुतसे जीव मारे भयके उस समय गङ्गा नदीके तटपर जाकर रहने * लगते हैं ॥ ५२-५३ ॥ भरत नेत्र के अन्दर एक आर्य खण्ड है जो कि शोभामें स्वर्ग खण्डके 5. समान जान पड़ता है । आर्य खण्डकी उत्तर दिशामें मथुरा नामकी नगरी है। उस समय मथुरा Mपुरीका स्वामी राजा अनन्तवार्य था जो कि सिंहके समान पराक्रमी था। उसकी रानीका नाम मेरु मालिनी था जो कि चंद्रमाके समान मुखसे शोभायमान थी। उसको दूसरी स्त्रीका नाम | मितवती था जो कि रोहिणीके समान परम सुन्दरी थी।चकोरके समान उत्तम नेत्रोंसे शोभायमान थी इसलिये वह साक्षात् देवांगना सरीखी जान पड़ती थी॥ ५४-५६ ॥ आदित्याभ नामका देव अपनी आयुके अन्तमें स्वर्गसे चया और रानी मेरुमालिनीके गर्भसे मेरु नामका पुत्र हुआ जो कि कांतिसे अत्यन्त देदीप्यमान था और अपने बंशरूपी पर्वत पर उदित होनेवाला सूर्य स्वरूप था। ५७ धरणेद्रका जीव भी अपनी आयुके अन्तमें वहांसे चया और रानी मितवतीके गर्भ में अवतीर्ण Ay

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