Book Title: Vimalnath Puran
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 349
________________ अपना सर्ग Tags नौम्यहं शिवकर्तारं गोरक्षं वृषभ जिनं । माद्यम्तवर्जितं सारं साराभं च शर्पणे ॥१॥ भयेव धातकोखण्डप्राग्भागे विस्तृतो Ka महान् । विदेशः पश्चिमो माति मकवास वापरः ॥२॥ तन्मध्ये गंधिलो नाम्ना समस्ति विष पोभृतः । धार्मिकैर्धनधान्येश्च विन्मु. | निपाकितः ॥ ३ ॥ अयोध्या विद्यते तत्र पुरी स्पर्धामसन्निभा । आईदासोऽभवदाजा तर लोलापुरंदरः ॥ ४ ॥ सुव्रताच्या प्रिया तस्य पिलसन्ती रतेच्छया । विद्युन्मालेव संवश कुकुमावणदेदकाः ॥ ५॥ रत्नमालावरच्युत्वा स्वावल्युतात्तयोः । जह जो भगवान कृषभदेव मोक्ष प्रदान करनेवाले हैं। पृथ्वीके रक्षक है। आदि अन्तसे रहित हे सार स्वरूप है और कल्याण स्वरूप हैं उन भगवान ऋषभ देवको में भक्ति पूर्वक नमस्कार करता हूं ॥१॥ इसी पृथ्वीपर धातुकी खंड द्वीपके पूर्व भागमें विदेह नामका क्षेत्र है जो कि अपनी hd अद्वितीय शोभासे उत्तम और स्वर्ग नगर सरीखा जान पड़ता है ॥ २॥ विदेह क्षेत्रमें एक गंधिलd नामका प्रसिद्ध नगर देश है जो कि धर्मात्मा पुरुष और धन धान्य आदिसे सदो व्याप्त बना रहता | है और विद्वान मुनियोंके चरण चिह्नोंसे सदा अंकित रहता है॥३॥ गन्धिल देशमें एक अयोध्यो नामकी नगरी है जो कि शोभामें स्वगं पुरीकी उपमा धारण करती है । अयोध्या नगरी का संरक्षक उस समय राजा अर्हदास था जो कि शोभा और क्रीड़ाओंमें इन्द्रके समान जान |* पड़ता था॥ ४॥राजा अर्हदासको रानीका नाम सुबता था जो कि रति संबंधी अनेक प्रकारके a विलासोंकी करनेवाली थी एवं उसका शरीर केसरके रङ्गका सदा शोभायमान रहता था इसलिये वह वीजलीके समान सुन्दर जान पड़ती थी॥५॥ रानी रामदत्ताका जीव जो कि रत्नमाला होकर PREMYTarkaryakse

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