________________
जायेत मानुषः ।। १७४ ।। जमन्यते शुभाः पुत्रा मे नियंते कथं विभो ! नेजोल्यन्ते गणाधीश ! धर्मणा केन सत्सुताः ॥ १७५ ॥ राश्यंधा बधिराः केन कर्मणा काय सर्वधित । मुकठोरादिमोरोग पीड़िताश्च कुतो पद ॥ १७६ ॥ परकृत्यारा जोवा दरिदा केन कर्मणा । नारोगा अतिरोगाश्व मुकास्तु पंगवः कथ।। १७७ ॥ भरिरूपा विरूपाश्च बेदनासहिताः कथं । निर्वेदाश्चापि भो । ईश! आयसे मानुषा बद ।। १७८ ॥ संवोभशीति पञ्चाश पकाक्षः फेन कर्मणा । फोष्ठयुक्का नरा नाथ! संपर्धते कथ' भवे ॥१७॥ अल्पसंसारका जीवा भूरिसंसारकास्तथा । शिवभाजो भवत्येव चद त्वं केन हेतुना ॥१८० बिगुल्योलकमार्जारा श्वानो ध्वां शाश्व गईभाः । चाण्डालाः केन जायते कर्मणा बद संप्रति ॥ १८१ ॥ अज्ञानतमसो भानो ! ज्ञानमूर्ते ! शिवप्रद ! भव्योधकुमुज्रोत
चन्द्रम: ! कमलापते ॥ १८२॥ कथय त्वं मयो क्त' यदविल'ब' दयानिधे ! भव्याः शुश्रूषयः संति विपाक कर्मणां धनं । १८३|| व्याजहार IN मूर्ख, कैसे धोर बोर और डरपोक एवं कैंसे धनी और निर्धनी होते हैं ? । प्रभो । किस कारणसे
तो संसारमें शुभ पुत्रोंकी प्राप्ति होती है किस कारणसे वे मर जाते हैं तथा जो श्रेष्ठ पुत्र जीते हैं वे किस कारणसे जीते हैं ? । भगवन ! आप यह भी कहें कि किस किस कर्मके उदयसे मनुष्य रतोंदवाले वधिर कंठ और उदर आदिके अनेक रोगोंसे पीड़ित परोपकारी और दरिद्रो, अत्यन्त रोगवाले और निरोग मूक (गूगे ) लंगड़े, अत्यन्त रूपवान और कुरूप, वेदनाओंके भोगनेवाले
और वेदना रहित पंचेंन्द्रिय और एकेंद्री कोढ़ी थोड़े दिन संसारमें रहनेवाले और बहुत दिन पर्यन्त संसारमें रहनेवाले एवं मोक्ष प्राप्त करनेवाले होते हैं ? तथा बगुली, उल्ल, विल्ली, कुत्ता, काक, गधे चांडाल आदि जीव किस कर्मके उदयसे होते हैं ? । हे नाथ ! आप अज्ञानरूप अन्धकारके नाश करने के लिये साक्षात् सूर्य समान हैं। ज्ञानकी मूर्ति स्वरूप हैं । मोक्ष प्रदान करनेवाले हैं। भव्य रूपी रात्रिविकाली कमलोंके प्रकाश करने के लिये चन्द्रमा स्वरूप है । लक्ष्मीके स्वामी हैं । हे दया | निधि ! मैंने जो कुछ पछा है कृपाकर शीघ्र उसका उत्तर दीजिये उपस्थित ये समस्त भव्य जोव कमों के विचित्र विपाक फलके जानने के लिये लालायित हो रहे हैं ॥ १७१-१८३ ॥ वलभद्र धर्मका
ЖҮККККККККККККККККК
khatrkarRPATTER