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बदा धौण हलना निषिद्धो बहुशोऽपि सः निषिद्ध उचाल पवाति पनगात्यतभीषणः ॥३०॥ अत्रीमणत्तदा शोरी प्रातार भ्राई भयः । लोलान्य चंचल चेत्यं श्रपा त्वं मन्नधारते ।। ३१०॥मो दुष्टा दुर्धरोऽशानी होनातिनराधमः । भत्स ऽपि कदाचित | रे हत्यारेन्ज गां ॥ ३१ ॥ विषयपि गताः संनः पापकर्म न कुर्वते । हेमा कुटवत्कटानति विक्ष धितो प्यकं ।। ११२ ॥ त्ग कमला प्रीत्या सेक्ते वकमत का । नान्यत्र परमात् त्वगुणश्यनुरागिणो|३९शात शूगस्ते विचारशा दानिनो धनि नश्च तं । मानिन
रूपि गो धारा उल्लघी न ये का । ३१५॥ अञ्जनाभगजोणकुम्मथलपलप्रियः। गोम युपि मत्त कि रतं संहरेद्धरिः ॥ ३१५ ॥ 2 भयंकर सर्पके समान नारायण स्वयंभका क्रोध और भी उवल गया और उस भटकी रक्षा करने
वाले मनुष्योंको मारने के लिये वह उद्यत हो गया अपने छोटे भाई स्वयंभू को इस प्रकार चंचल 16 और निंदित कार्य करते देख वलभद्र धमने कहाa कामदेवके समान रूपवान् भाई ! तुम मेरी बात सुनो- संसार में यह बात सर्व जन प्रसिद्ध है
कि जो पुरुष दुष्ट होता है कर अज्ञानी हीनजाति और नीच होता है वह भी दूतको मारकर 5 ल इमीका हरण नहीं करता । तुम निश्चय समझो कि जिसप्रकार भूखसे अत्यंत व्याकुल भी A हंस कुक्कुट-मुके समान की डॉको नहीं खाता किंतु मोतियोंको ही खाता है उसीप्रकार जो
पुरुष सज्जन हैं उनपर कितनी भी विपत्ति क्यों न आकर पड़ जाय वे कभी भी पापजनक कार्य | नहीं कर सकते ॥ ३०६-३१२ ॥ लक्ष्मीकी तुम्हारे ऊपर इतनी भारी कृपा है कि वह अकेले -
तुम्हींको अपना स्वामी मानकर प्रेमपूर्वक तुम्हारी सेवा करती है तथा तुम्हारे गुणोंमें वह इतनी । - अनुरक्त है कि तुम्हें छोड़कर वह दूसरी जगह नहीं जाना चाहती। भाई । संसारमें वे ही तो शूर
और और वे हो विचार शोज दानी धनी मानी रूपवान और धोर वीर हैं जो कि किसी भी मर्यादा D का उल्लघन नहीं करते ॥ ३१३--३१४ ॥ जो सिंह अंजन पर्वतके समान हाधियोंके मांसको न AS पूर्वक खानेवाला है अर्थात् मत्त हाथियोंका विदारण करनेवाला है क्या वह मत्त भी शृगालको |
Rashekh
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