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BE वय सर्वेऽपि संभूय हनामोऽखिलघातिनं ॥ ६५ ।। माकुरतास्य विश्वासं मन्यव मद्रयो ध्रुवं । अय' रात्री स्त्रियो वालान् पान वा -
भक्षयिष्यति ।।६६ नस्मात्स इचनं यूयं प्रतीत किमहं वृथा। मृपा भावे किमेतेन चरमसत्यत्र मे पृथक् ॥ ६॥ इति विद्याधराः सर्व मुग्धास्तेन प्रताग्निाः । सायुधा नियं युस्तूर्ण मृत्युभीत्रस्तमानसाः ॥ ६८ ॥ गत्वा ते शस्त्रयातस्तं युगपजघ्नुरादरात् । दृपदण्डकरा घातगगलान्मुनिपुङ्गवं ॥ ६६ ॥ रोहिणीभचतुर्दश्यां चतुर्दशमिते ध्रुवं । गुणस्योद्भावभाषायां श्रितानां भुवनेश्वरः ॥ ७० ॥ शमाल हिये । इसका तुम रश्चमात्र भी विश्वास मत करो में जो कह उसे ठीक समझो तुम निश्चय समझो रात्रिमें यह स्त्री वालक और पशुओंको नियमसे खा लेगा। मेरे हितकारी वचनों पर तुम सब लोगोंको पूर्ण विश्वास करना चाहिये में मिथ्या नहीं बोल सकता क्योंकि इसके साथ मेरा कोई खास बैर नहीं है ॥५५-६७॥ दुष्ट विद्युद्दष्ट्रके वचनोंका मूर्ख विद्याधरों पर प्रभाव पड़ गया मृत्युके भयसे जिनका चित्त चल विचल है ऐसे वे समस्त विद्याधर अपने २ शस्त्रोंको लेकर शीघ्र
नगर से निकल दिये। वे दुष्ट पास जाकर मुनिराज संजयन्तको एक साथ बड़े उत्साहसे नीचेसे | Ma ऊपर तक पत्थर लाठी मुक्के और अनेक शास्त्रोंसे एक साथ मारने लगे ॥ ६८-६६ ॥ रोहिणी
I (भाद्रपद मासकी ? ) कृष्ण चतुर्दशी जो कि अनेक गुणों के विकासका स्थान है और तीनों लोक IS के इन्द्र जिसकी पूजा करते हैं उस दिन मुनिराज संजयन्तने अपने परिणामोंमें उत्कृष्ट सीमाकी
समता धारण कर ली एवं अनेक प्रकारके कष्टोंकी अनेक प्रकारका आनन्द मान व आनन्दमय | हो गये ठाक हा है जिन पुरुषोंका चित्त धीर वीर है उनके लिये घोर आपत्ति भी उत्सव स्वरूप हो । जाती है। परम पवित्र मुनिराज संजयन्तने जिसप्रकार काष्ठसे अग्नि जुदी कर दी जाती है कोप
खोलसे तलवार और दूधसे घी पृथक कर दिया जाता है उस प्रकार अपनी आत्माको देहसे सर्वथा 12 जुदा समझ लिया। दुष्ट विद्युद्दष्ट्र द्वारा किये गये सारे उपसगको उन्होंने सह लिया। उपसर्गोके |
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