________________
स्थगितबन्द्रमाः।। ६३ ।। साष्टांगाष्टसहनच नमस्कार पुरा पुरोः। पुरस्तात् श्वेतशैले स वर्करीतिस्म प्रत्यह ॥६४ ॥ तत्पुण्योदयतस्तस्य पद्भ्यामश्वो हि कोलितः! धोत्पाटयितु शक्तो न बभूव धरापति ॥६५॥ महौजसं न मत्वा महाकन्छः खाधियः मत्वा कन्योभर्धा वार्ता' चकार बिनयान्वितः॥६५॥ निशम्यरायणो राजा रराणेति खगेश्वर'। महं नैमि कचिस्ते चेदानय त्वं च पायकां ॥ ६६ ॥ इक्ष्वाक्वन्वयसंभूतनृपाणां स्यर्थमागमः | सजाघटीति मो जातु लंच्यते न कुलकमः ॥६॥ सांभ तं स || उत्तम गर्दनसे शोभायमान एवं अतिशय भयङ्कर उस घोड़े पर तत्काल सवार होलिया।६१६।
वह राजा ऐरावण प्रति दिन कैलाश पर्वतके भागे उस घोड़े के साथ साष्टांग नमस्कार न करता था । राजा ऐरावण के पुण्यके उदयसे उसके पैरोंसे वह घोड़ा कीलित हो गया था। अत एव
वह राजा ऐरावणको कभी भी डाल नहीं सका था। ६३-६४ । विद्याधर महाकच्छकी यह इच्छा थी कि मैं घोड़े के द्वारा राजा ऐरावणको अपनी राजधानी ले जाऊंगा और वहां ले जाकर अपनी कन्याके साथ उसका विवाह कर दूंगा परन्तु जब घोड़ा राजा ऐरावणके पैरोंसे कीलित हो गया , तब उसकी कुछ भी तीन पांच न चली इसलिये राजा ऐरावणको प्रबल पराक्रमी जान विद्याधर 4 महाकच्छने उसे नमस्कार किया एवं कन्या सम्बन्धी जो कुछ भी बात थी विनय पूर्वक सारी कह सुनाई ॥ ६५ ॥ विद्याधर महाकच्छकी यह बात सुन राजा ऐरावणने कहा
में तुम्हारी राजधानी जाकर उस कन्याके साथ अपना विवाह नहीं कर सकता यदि मेरे साथ उस कन्याके विवाह करनेकी तुम्हारी इच्छा है तो तुम उस कन्याको यहां ला सकते हो। IN क्योंकि जो राजा इक्ष्वाकुवंशमें उत्पन्न हुए हैं स्त्रीके लिये वे कहीं भी नहीं जासकते, मैं भी तुम्हारे
यहां जाकर अपनी कुज मर्यादाका लोप नहीं करना चाहता। ६६६७ । राजा ऐरावणके ऐसे वचन सुन विद्याधर महाकच्छ अपने घर लोट आया और राजा ऐरावणके कहे अनुसार वह कन्याको ले ही जारहा था कि उसी समय यह घटना आकर उपस्थित हो गई।
РkЕРКЕКККККККККККККККК
shrIVERNKYAYaraKISM