________________
Kev
' । प्रांत समाधिना मृत्यां सोह्यदच्युते दिपि ॥ २०० ॥ तपसा रत्नमालापि स्त्रीत्वं छित्त्राऽच्युनामिधः । देवोऽभूदच्युते स्व सुखापनमः ॥ २०९ ॥ द्वाविशत्यधितानायुः सुखं ती प्रापतुः परं । तावद्विश्व सहस्रस्तो मनसाहारमापतुः ॥ २०२ ताक्षः समुच्छ्वा सुगंधीकृतदिचयं कुर्वती सेव्यमानी व रम्माराज्यामरा लिमिः ॥ २०३ ॥ भोजयामासतुस्तौ शं निमिया कुठे करभ्यंग पद्मरागमणिभौ ॥ २०४ ॥ अथ यः प्रासनः श्वाभ्रो निर्गतः श्वभ्रतः । नानायोनिषु दुःखानि यानि भुक्तानि तेन ॥ २०५ ॥ नाना छत्रपुरे व्याधो वर्तते कज्जलप्रभः । दारुणाख्यो महापाप पापपुंज झाद्भुतः ॥ २०६ ॥ तस्य गृहस्थाश्रम में हो फसा रहे तो वह तप नाशक बन जाता हैं ॥ १६६ ॥ मुनिराज रत्नायुध सूर्यकी ओर टकटकी लगाकर घोर तप तपने लगे और अंत में समाधिपूर्वक प्राणोंका त्याग कर अच्युत स्वर्ग में जोकर देव होगये |२००| आर्यिका रत्नमालाने भी घोर तपके भाव से स्त्रीलिंगको छेद दिया। अच्युत स्वर्गमें जाकर वह अच्यूत नामका देत होगई जो कि देव सुखरूपी समुद्रकी वृद्धि के लिये चंद्रमा स्वरूप था। वे दोनों देव बाईस सागर प्रमाण आयुके धारक थे। परम सुखी थे । वाईस हजार वर्षोंके बाद एकवार मनसे आहार ग्रहण करते थे। बाईस पक्षोंके बाद अपनी सुगंधिसे समस्त दिशाचोंको महकानेवाला सुगंधित उसास लेते थे और अनेक देवांगना और देव उनकी सेवा करते थे ॥२०१२०३ । शुकलेश्या के धारक थे। तीन हाथके शरीर से शोभायमान थे और पद्मराग मणिके समान प्रभाके धारक थे ॥ २०६ ॥
मंत्री सत्यघोषका जीव जो अजगरकी पर्यायसे चौथे नरकमें गया था । वह वहांसे अपनी आयु
समाप्त होजानेके बाद निकला एवं अनेक योनियों में घूमने के कारण उसने बहुत दुःख भोगा | २०५ |
पदमपुर नगर में एक दारुण नामका भीख रहता था जो कि काजलके समान काला था और साचात्
पाप रूप था ॥ २०६ ॥ उसको स्त्रीका नाम मंगिका था जो कि काजलका पिंड स्वरूप थी एवं
ke
お幣前橋赤味