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श्रीमगिका नाम्ना कज्जलालिश्च वैधसारिचिता तमसो माला जगत्स्थानमिव ध्रयं ॥ २०७ ॥ तयोः पुत्रोऽभवत्सोऽपि भीषणो भीक्ष्मीप्रदः । नाम्नासिदारुणोदुष्टो मृगादीमा विनाशकृत् ॥२०८॥बने प्रियंगुसण्याख्ये बजायुधमुनीश्वरः । आययाचेकदा हिं भीषणे बिहानको ॥ २० ॥ गहन विपिन स्थान दृष्ट्वा तत्र स्थितो मनिःकायोत्सर्ग' विधायाशु संस्मरन् परमं महः ॥ २१० तपसाक्षामगात्र समर्धदग्धपासुबतू । गतचायं मुनि' अष्ट्या समेत्तत्रासिदारुणः॥२२१॥ अनबीदिति घोपेन समारूढ़ विधाय सः । काम के दुर्वचोभिस्तं दूपद्धस्तो भ्रमन्नामि ॥ २२ ।। कोऽसि त्वं कुत भायातो मदने जनप्रर्जिते । किमयं यस्य पुखोऽसि फिनामा
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ऐसी जान पड़ती थी मानों यह जगतमें ब्रह्माने अंधकारकी माला रच दी है भोलिनी नंगीके मंत्री | सत्यघोषका जीव वह मोरकी अतिदारुण नामका पुत्र हुआजो कि महाभयंकर था। डरपोकोंको भय | प्रदान करनेवाला था टुष्ट था और मृग आदि दीन पशुओंका नाशक था। छत्र पुरका एक प्रियंगुखंड नामका बन थी जो कि हिसक जीवोंसे गहा भयंकर था। जहां तहां बिहार करते २ मुनिराज बजायुध वहांपर आये। गहन निर्जन स्थानमें कायोत्सर्ग मुद्रा धारणकर वे विराज गये और सिद्धोंके - स्वरूपका चितवन करने लगे। मुनिराज वजायुधका शरीर घोर तपोंके तपनेके कारण एकदम कृश था इसलिये वे आधे जले मुर्दे सरीखे जान पड़ते थे एवं उनके शरीरकी प्रभा एकदम नष्ट होगई थी। मृगोंके पकड़ने की खोज में भीलघुत्र अतिदारुण भो घमता २ वहां आ पहुचा एवं मुनिको देखकर पूर्व वैरके संबन्धसे उस दुष्टने वाण धनुष पर चढ़ा लिया। हाथमें मारनेके लिये पत्थर ले लिये। एवं मारनेके लिये घुमाता हुआ वह इसप्रकार दुर्वचन कहने लगा--
तू कौन है ! और इस जनशून्य मेरे बनमें तू कहांसे और क्यों आया है ? किसका पुत्र | IM और तेरा क्या नाम है ? जल्दी बता यदि तू जल्दी न बतायेगा तो वाण पत्थर और मुक्कोंसे तुम Pअभी यमराजके मन्दिरमें पहुंचा दूंगा ॥ २०७-२१३ ॥ परम ध्यानी मुनिराज ऐसें कब भय
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