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नामान्वर्थ समुद्रहन्। पोदनाव्य पुरता राजराजपुरोपौ ॥ १६ ॥ तव राजा यशःसंघः पूर्णचन्द्राभिधोऽसमि पूर्णचन्द्रमुखः पूर्ण रामाभोगपुर दरः ॥ १६॥ पदापतिवलो राजा पूर्णचन्दनाय तां। हिरण्यादिचतोमाशु पङ्कजारणपत्सलां ।। १६८ ॥ प्रगल्भका तया सार्क रेमे राजा चिरं सुख । भोगावनिमावेन कजमृद्धारवणेया॥ १६ भुजानयोस्तयोः सौख्यं सुता जाता विधर्वशात् । मधुरा ब्राह्मणी सैव रामदता त्यमुत्तमा ॥ २००५ भर्ता मातृत्वमायाति जाया पुरी भवेशहो । पुत्री पुत्रत्वमाप्नोति धिक् धिक् संसारचित्रता ॥ २०१॥ भनिनवणिक योऽई सिंहचन्द्राभिधस्ता । पुत्रो भूत्वातिमोहन मुछिपदमाश्रितः ।। २०२॥ तवैध प्रारमये या भूत पारणी पुत्रिका शुभासा मृत्वा पूर्णचन्द्राख्यो मेनुनोऽभूत्तबोदरे ॥ २०॥ स्वस्पिमता पूर्णचन्द्रो यः पोदनाधीश्चरो हि सः त्यक्त्वा
चन्द्रमाके समान मुखसे शोभायमान था ॥ २६६ ॥ राजा अतिवलने कमलके समान लाल २
चरणोंसे शोभायमान कन्या हिरणवतोका विवाह राजा पूर्णचन्द्रके साथ कर दिया ॥ २६७२६६ ॥ RC कन्या हिरणवती अपनो प्रौढ अवस्थासे शोभायमान थी। कमलके समान कोमल और सुन्दर वर्ण | की धारक थी इस लिये राजा पूर्णचन्द्रने चिर काल तक उसके साथ मनमाना सुख भोगा ॥२६॥ बहुत दिनतक भोग विलास करते २ उन दोनोंके एक पुत्री हुई जो कि मधुरा ब्राह्मणीका जीव था।
वहो मधुरा ब्राह्मणीका जीव तू रामदत्ता है ॥ २० ॥ यह संसारकी बड़ी भारी विचित्रता है कि भइसमें जो अपना पति है वह तो माता हो जाता है। स्त्री पुत्रो हो जाती है और पुत्री पुत्र वन
जाता है इसलिये ऐसे दुःखप्रद संसारके लिये सहल वार धिक्कार है ॥ २०१॥ मेरा तेरे ऊपर Id विशेष मोह था इसलिये भद्रमित्र नामका जो में सेठ पुत्र था वह तेरा सिंहचन्द्र नामका में पुत्र
हुआ हूं जो कि मैं इस संसारसे विरक्त हो मुनि बन गया हूँ । २०२ ॥ पहिले भवमें जो तुम्हारे
वारुणी नामकी कन्या थी वही मरकर तुम्हारे उदरसे उत्पन्न मेरा छोटा भाई पूर्णचन्द्र हुआ है। C॥ २०३ ॥ तुम्हारा पिता राजा पूर्णचन्द्र जो कि पोदन पुरका स्वामी था समस्त राजपाटको छोड़
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