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छलादि पुरनालिसुग्दर ।। १०२॥ प्रीतिभद्रो मपस्तत्र शत भ्योऽतस्तमानसः। राजतेऽमरराजोवा विशालोरा गुणार्णवः॥ १०३ ।। तस्यासीत्सुन्दरी नारना हिया मधमापिणी । सदीय सती रम्या सुन्दरीय मनोभुवः॥ १०४ ॥ तयोमुनियोः सौख्यं नाम्ना प्रीतिकरः सुतः। संबभूव गरीयांश्च चातुरीर जितामयः ॥१०५॥ मन्त्री चित्रमशिस्तस्य कमला कमलोपमा । भामिनी भूरिवर्णागी जातास्येव सुरांगना ॥ १०६॥ तुम्विचित्रमादिग्निा नानाविज्ञानपारगः । कलासु कुशलः केतुरम्यांगो भेश्वराननः ॥ १०७ ॥ अन्यदा मनिपुण साकं राजामजोबने । कीमितु गरुवारत्न दृष्ट्या धर्मरुचि मुनि । १०८॥ मत्वा तत्पुरतो धीमान निविष्टः कालभासने
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नगर है जो कि रत्नोंकी पंक्तियोंसे सदा शोभायमान रहता है ॥ १००-१०२॥ छत्रपुरका स्वामी
राजा प्रीतिभद्र था जो कि शत्रोंसे सदा निभय रहता था। शोभामें इन्द्रके समान शोभायमान | Dilथा। विशाल वक्षस्थलका धारक था और अनेक गुणोंका समुद्र था ॥ १०३॥ राजा प्रीतिभद्र EC की स्त्रीका नाम सुन्दरी था जो कि अत्यन्त मीठा बोलने वाली थी। पतिव्रतापनमें सती सुन्दरोके 51
समान थी और सुन्दरतामें कामदेवकी सुन्दरी रतिकी उपमा धारण करती थी ॥ १०४॥ राजा प्रीतिभद्रके रानी सुन्दरीसे उत्पन्न प्रीतिङ्कर नामका पुत्र था जो कि गुणोंमें महान था और अपनी पांडित्य पूर्ण चतुरतासे देवोंकोभी रंजायमान करनेवाला था ॥ १०५ ॥ राजा प्रीतिभद्रके मंत्रीका नाम चित्रमति था। उसकी स्त्रीका नाम कमला था जो कि कमला लक्ष्मीके समान परम सुन्दर वर्ण के धारक शरीरसे शोभायमान थी अतएव वह देवांगना सरीखी परमसुन्दरी थी ।१०६ मन्त्री चित्रमतिका पुत्र विचित्रमति था जोकि ज्ञान विज्ञानोंका पारगामी था। अनेक कलाओंमें | कुशल था। कामदेवके समान परम सुन्दर था और चन्द्रमाके समान मुखसे शोभायमान था॥ १०७॥
एक दिनकी बात है कि मंत्रिपुत्र विचित्रमतिके साथ राजपुत्र प्रीतिंकर बनमें कीड़ा करनेके
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