________________
딤
त्रलेले
REVEA
कार्यपापिना ॥ १५२ ॥ सजायं बालकः पुत्रः । राजनीतिं न वेत्त्यतः । कुश्चित्कारणान्नूनं भारणीयस्त्वया चिरात् ॥१५३॥ ॥ तुभ्यं प्रौढ़ाय पुत्राय राज्यं दास्यामि निश्चित । मद्द' मन्त्री भवेय ते स्वीयं राज्य' द्विसौम्यदं ॥ १५४ ॥ श्रस्वति तत्पितुर्वश्यं स्वामि द्रोहकर सुतः । शिरोविध न कुर्वन् भूपाभ्यासं समाययौ ॥ २५५ ॥ राजान' स समाहूय निःशलाके सुप्रतिमान् । पियुक्त सक तस्मै 'नृपाय समवबुधत् ॥ १५६ ॥ विचार्य वचनं तस्य राज्ञा मन्त्री निराकृतः । देशारस्वपुरतो वेगाद्राजहाराश्च दुर्मतिः ॥ १५७ ॥ विद्युत्पातान्मृन' दृष्ट्वा मरालद्वयषदा । सद्यो वैराग्यमापन्नो विरकोऽभून्नद्रवत् ॥ २५८ ॥ राज्यभार ददौ तस्मै श्रुतसागरमं
राजा सुकोशलका मंत्री बड़ा दुष्ट था एक दिन उसने अपने पुत्र श्रुतसागरको एकांत में बुलाया और उस पापीने इस प्रकार उससे कहा- पुत्र ! राजा सुक्रोशल अभी वालक हैं। किसी प्रकार की राजनीतिका जानकार नहीं तुम्हें चाहिये कि तुम किसी भी उपाय से इसे मार डालो ।। १५२।१५३|| तुम युवा और राजके योग्य हो तुम निश्चय समझो यह सारा राज्य में तुम्हें दूंगा और में तुम्हारा मंत्री बनकर रहूगा बस फिर राज्य हमारा ही हो जायगा ॥ ९५४ ॥ मंत्रिपुत्र श्रुत सागर अपने fara इस प्रकार स्वामी द्रोह सूचक वचन सुनकर चित्त में बड़ा दुःखित हुआ । उसने अपने पिता भी मंत्री की कुछ भी पर्वा न की शिर पटकता हुआ वह शीघ्रही राजाके पास चला गया। सज्जन पुरुषोंपर सदा प्रेम रखनेवाले मंत्रीपुत्र श्रुत सागरने शीघ्रही राजाको बुलाया और जो उसके पिता मंत्र कहा था सब ज्यों का त्यों राजाको कह सुनाया ।। १५५ – १५६ ॥ श्रुतसागर के वचनोंपर राजा सुकोशलने पूर्ण ध्यान दिया । दुर्बुद्धिके धारक उस मंत्रीको तिरस्कार पूर्वक देश नगर और राज दरबारसे तत्काल बाहिर निकाल दिया ॥ १५७॥ एक दिन राजा सुकोशलने क्या देखा कि बिजली के गिरनेसे दो हंस मर गये है बस एक दम उन्हें संसारसे वैराग्य हो गया और मुनिके समान राजवैभवको उन्होंने मंत्री श्रुत सागरको समझा दिया ॥ १५८ ॥ राज्य भारके योग्य
おおおお
49