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पापं तल पानाभगोवरं ।। ६० ॥ मारकास्तं विलोक्याशु परस्परसमीपरत् । छेदगर्भेदनैः शूलारोपपोई प्रयादनः ॥ ३१ ॥ ध्वांक्षोलूक पिडालाश्च व्याघवृश्चिवरूपिभिः! मारकैशुचते सहा लंध्यते न गतिर्विधेः ॥१२॥ अथ 'जम्बमति पे विरूवाते त्वज भारते।
। विद्यते चापूरम्या पौरहतीष पू: परा।। ३३॥ राजापरावितस्तय शव भिः कृतशासन; । अस्यास्ति सुन्दरी नाम्ना रामा रम्भानुकारि काणी ॥ ६४ ॥ अवधेयकाद्देव सिंहस्चरस्तयोः । च्युत्वा प्रति बभूव पुत्रश्वकायुधो महान ॥ ६५ ॥ महाराजसुताः पञ्बसहनन
मिताः पराः। उपयभ्य सुख तस्थौ पुत्रश्वकाययुधोपली अर्कपभोपि कापिष्ठाच्च्युत्वा चक्रायुधस्य तुक' 'संजातश्वित्रमालायर्या
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पर प्रभा नामके नरकमें जाकर नारकी होगया और अपना किया हुआ पापोंका फल जोकि वचनों से कहा नहीं जा सकता भोगने लगा ॥६०॥ अन्य नारकियोंने जिस समय उस अजगरके जीव नारकीको देखा तो उनका एक दम क्रोध उवल उठा एवं वे आपसमें छेदना भेदना शूलीपर चढ़ा देना और गाली गलौज करना आदि कारणोंसे उसे मारने ताड़ने लगे। उस पापी अजगरकेन जीव नारकीको काक उल्ल, विल्ली घीड़ा बाघ वीके स्वरूपके धारक नारकियोंने अनेक प्रकारसे मारना पीटना प्रारम्भ कर दिया। ठीक ही हैं कर्मकी गति रोकी नहीं जा सकती ॥६१-६२ ॥ - इसी जम्बूदीपके प्रसिद्ध भरत क्षेत्रमें एक चक्रपुरी नामकी नगरी है जो कि उत्कृष्ट है और
शोभामें इन्द्रपुरीकी उपमा धारण करती है ॥ ६३ ॥ चक्रपुरीका स्वामी राजा अपराजित था। - जिसका कि शासन शत्रुओंपर पूर्ण रूपसे चलता था और उसकी सुन्दरी नामकी रानी थी जो
कि शोभामें इन्द्रागीका अनुकरण करती थो ॥ ६४ ॥ मुनिराज सिंहचन्द्रका जीव वह अहमिंद 5ऊर्ध्व वेयकसे चया और रानी सुन्दरीके गर्भमें अवतीर्ण हो चक्रायुध नामका पुत्र होगया ॥
॥ ६५ ॥ अपनी युवावस्थामें कुमार चक्रायुधने पांचसो रोज कन्याओं के साथ विवाह किया और d वह सानन्द बिषय भोगोंका अनुभव करने लगा ॥ ६६ ॥ मुनिराज रश्मिवेगका जीव अर्कप्रभ देव ।
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