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रक्षितं ।। १६ । घिलोक्य दुर्गम गत्वा धने व्याघुट्य वेगतः । अधिरुह्य हरि रेमे नानाकोतुककृत्वगः ॥ ५७ ।। राजपत्रास्तदा स्तु वीरसेनादयोऽखिकाः । आफेणुस्तदने दूष्ट्या पप्रच्छुस सकौतुकं ॥५८ कोसिस् कुत भायातः कस्यानोऽयं निरूप्यतां । मलका वागत:खेटोऽस्यहमेश्वोऽतिदुर्धरः ॥५६॥ घोटक दुर्धर घण्टामालारावचलीकृतं । देहि सत्पावं लोक्य मूल्यं दरका तंतः:, पर॥६०। गृण्वामीत्यगदीद्वीरसेनास्यस्तं च घर। आरुढ़ समावेध हरिवीरमपातयत् ॥ ६१ अश्वारोहण ते जाता नष्टपाद | फरास्तदा । महापूरकारमाकाकाणैरायणो नृपः ।। ६२ ।। घोटक' दुर्द्धर भस्या संस्थाप्योच्च सकघर' । भाइरोह महातेजास्तं नः
राजा महाकच्छ शीघ्र ही वनको लोट आया और घोड़ेपर सवार हो अनेक प्रकार के कौतूहल करने | PK लगा । ५६ । राजा ऐरावणके वीरसेन आदि कुमार भी उसी वनमें कीड़ा करनेके लिये आये । घोड़े Da पर चढ़े विद्याधर महाकच्छको देख उन्हें बड़ा भाश्चर्य हुआ और वे इसप्रकार पूछने लगे
भाई ! तुम कौन हो? कहांसे आये हो और जिस घोड़े पर तुम चढ़े हो वह किसका घोड़ा है ? उत्तरमें विद्याधर राजा महाकच्छने कहा-मैं अलकपुरसे यहां भाया हूं। मैं विद्याधर हूं और 12
यह बलवान घोड़ा मेरा है ।५७-५८। भाई ! घंटरियोके शब्दोंसे शोभयमान और चंचल तुम्हारा यह IS घोड़ा बड़ा दुर्घट जान पड़ता है । कृपाकर दीजिये हम इसकी चाल ढाल देखलें । यदि हमें जचत
गया तो हम मूल्य देकर इसे खरीद लेंगे । जब ऐसा कुमार बीरसेनने कहा तो विद्याधर महाकच्छ
ने उसे घोड़ा देदिया। बरिसेन घोड़ेपर चढ भी लिया ज्यों ही घोड़े ने उसे अपने ऊपर चढ़ा देखा IN देखते २ शीघ्र नीचे पटक दिया। ५६।६। और भी कुमार घोड़ पर चढ़ परन्तु घोड़े ने एककी भी
सवारी नहीं झेली, क्रम क्रम कर सबोंको नीचे पटक दिया जिससे हाथ पैरोमें चोट आनेसे उन समस्त राजाकुमारोंमें हाहाकार मच गया। अपने पुत्रोका इसप्रकार हाहाकार सुन राजा ऐरावण शीव वहांपर आया एवं अपने तेजसे चन्द्रमाको फीका बनाने वाला महातेजस्वी वह राजा ऐरावण
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माया