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Taajavad
भामित्रो दवा सुतालिकां। अहो मुनिः कथं तेन दक्षिणोपमीयते ॥४०॥ तदोचुस्तेऽथ मुन्मित कथ्यमानां कथां शृण । श्रुता मुनिभुखाभ्योजान्निश्चयोत्पादिनों सुहत् ॥ ४२ ॥ अथास्ति स्तवकग्लुछपननं सागतिके। हेमरूप्यायसां दुर्गेष्टितं त्रिभिरूमिगं । ५४२ ॥ रामाणां पुरुषाणां वा चातुर्याः सद्मनां पुरः । शोमायाः सरसः केन वय॑ते गुरुणापि न ॥४३॥ तत्र चैरावणो राजा राजजाना चाहते हैं तुम्हें भी चाहिये कि हमारे साथ तुम भी व्यापारके लिये रत्नद्वीप चलो । मित्र ! | जिसप्रकार प्रवल तप तपनेवाले क्रोधी मुनिका बिपुल भी तप निरर्थक माना जाता है उसीप्रकार | पुत्र भी उत्पन्न हो परन्तु वह धनका उपार्जन करने वाला न होकर उसका क्षय करने वाला हो तो उसका होना भी निरर्थक है। अन्य धनिक पुत्रोंकी यह बात सुन भद्रमित्र ताली देकर हंसने लगा
और हंसते हंसते उसने यह कहा____ भाई ! तुमने जो मुनिके साथ दरिद्रकी तुलना की है वह बड़ी हास्य जनक है । उत्तम मुनिके साथ दरिद्रकी तुलना कैसी । भद्रमित्रकी यह बात सन सेठ पुत्रोंने कहा प्रिय भद्रमित्र। इसी विषयमें हमने मुनिराजके मुखसे कथा सुनी है जो कि सर्वथा निश्चय करने योग्य है हम वह कथा | तुम्हें सुनाते हैं तुम ध्यान पूर्वक सुनो।
इसी पृत्वीपर एक स्तवकग्लुछ नामका नगर है जो कि सोना चांदी और लोहके वने तीन परकोटोंसे शोभायमान है इसी लिये तीन तरङ्गोंसे ब्याप्त वह समुद्र सरीखा जान पड़ता है । ३५-४१ ॥ वह स्तवकग्लुंछ नगर चतुरता और शोभाको स्थान स्वरूप स्त्री और पुरुषोंसे सरसरूप था इसलिये वह ब्रह्मा और वृहस्पतिकी भी बर्णनाके अगोचर था॥ ४२ स्तवकग्नुछ नगरका स्वामी राजा ऐरावण था जो कि कुवेरके समान दानी था। और चन्द्रमाके समान स्वच्छ यशका धारक था। शत्रु ओंके लिये शल्यवरूप था और समृद्ध था॥४३॥ उस समय राजाऐरावणके राज्यकालमें
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