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奇奇観察研
Yaya
४७८१
सांगणं राज्यं धनं रूप यशस्विता । चत्विं वासयत्वं च तपसा किं न साध्यते ॥
निर्जरा यस्मान्नांशे
गित्वं मये भये । लेखाः किकरता यांति तत्तपः शस्यते न कि ॥ ४८० ॥ सौभाग्यादिगुणा ये तु तेन कामसुतोत्राः । भवंति रतिभा
राम: किन स्यात्सगरादिवत् ॥ ४८१ ॥ अतो द्यूतादिकं कर्म कुत्सितं निदित सतां । परित्यज्य विधातव्यं धर्मपुण्यादिसाधन धर्मात्पुत्राः पवित्राः परमनिधिपतिः किन्तु रूप दुराप्य' सौभाग्य तोर्थकृतचं गजयगणतान्वोतधात्रीश्वरत्वं ।
चक्रवती और इन्द्रपना ये सारी बातें तपके द्वारा प्राप्त हो जाती हैं ऐसी तीन लोककी कोई चीज नहीं जो तपसे न प्राप्त हो जाती हो। जिसकी कृपाले कर्मों की निर्जरा होती है । भव भव में निरोगताका लाभ होता है और देवगण आज्ञाकारी सेवक बन जाते हैं वही तप संसार में प्रशंसनीय माना जाता है | इसकी कृपा से संसार में सौभाग्य आदि गुणोंकी प्राप्ति होती है । उसीसे कामदेव के समान सुन्दर पुत्र उत्पन्न होते हैं। तथा रतिके समान परम सुन्दरी स्त्रियोंकी भी प्राप्ति होती है विशेष क्या सगर चक्रवर्ती आदिकी विभूतिके समान विभूतियां इस तपके द्वारा प्राप्त होती हैं इसलिये जो महानुभाव मोक्ष यदि विभूतियोंके इच्छुक हैं उन्हें चाहिये कि जच्चा आदि निन्दित, परिणाम में दुःखदायी समस्त कार्योंका सर्वथा परित्याग कर धर्म और पुण्य आदि के साधन करनेवाले ही कार्योंको करें निन्दित कार्योंकी ओर रंचमात्र भी दृष्टि न डालें ||४७८-४८३ ॥
अन्तमें आचार्य धर्मकी प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि धर्मके द्वारा ही पवित्र पुत्रोंकी प्राप्ति होती है । उत्तम निधिका स्वामीपना प्राप्त होता है । महा मनोज्ञ रूप सौभाग्य तीर्थकरपना हाथी घोडासे शोभायमान पृथ्वीका ईश्वरपना अप्सराओंके समान स्त्रियोंका मिलना । प्रवल शक्ति जिससे कि शत्रुओंका विध्वन्स किया जाता है प्राप्त होते हैं विशेष क्या स्वर्ग और मोकी प्राप्ति भी धर्म से होती है इसलिये हे विद्वान पुरुषो यदि तुम्हें पुत्र आदि विभूतियोंकी अभिलाषा है तो
AYAYA
SAVRY