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भारतेऽत्र महाद्वापे मथुरामुत्तरां ययौ ॥ तत्राकाषोन्महाशमा विष्टरस्य धनाधिपः । गव्यतिद्वादशानां च विशालस्य महास्विरः । ३ ॥ मांगतमा बिमारी चत्वारा तिताः । कासाराणि ततो हंसचक्रक्रीड़ान्वितानि च ॥ ४॥ पंचवर्णमहारत्नपूर्णसंदर्भितो व्यभात् धूलीसाराभिवः शालो लवणोदधिरिवापरः ॥ ५॥ सजलाः सजलास्तत्र खातिकाः पङ्कजांचिताः । विराजते सरोत्रातः कोठालोलतरी कृताः॥६॥ पुष्पाणां वाटिका नानायुपराजिविराजिताः । भांति शृगारसंयुक्ताः स्त्रियो वा हासहर्षिताः ॥ ७ ॥ हैप: प्राकार आका शद्धिधाकारीच सन्दरः । नाट्यशाला विराजते किन्ननिर्तनोत्सः। ८॥ घल्लोनो भूमयो भांति चान्यदुनानसद्वनं । नामाशःखिस अपने कल्याणकी सिद्धिके लिये मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ ॥ १॥ समस्त प्रकारकी भ्रांतिसे । रहित वे भगवान विमलनाथ समस्त पृथ्वीपर विहार करते २ एक दिन भरत क्षेत्रके जम्बूद्वीपको - मथुरा पुरीमें जा पहुचे। कुवेरने अत्यन्त शोभायमान समवसरण रच दिया जो कि बारह गव्यति । प्रमाण था विशाल था और महा कांतिसे देदीप्यमान था ॥२-३॥ समवसरणके अन्दर चार मानस्तम्भ विद्यमान थे जो कि नाना प्रकारके रत्नोंसे व्यात थे। उनसे आगे तलाव शोभायमान थे। जो कि हंस और चकवा पक्षियोंकी क्रीड़ाओंसे व्याप्त थे ॥ ४ ॥धलीशाल नामका शाल वहांपर । अत्यन्त शोभायमान था जो कि पांच वर्णके रलोंके चर्णसे व्याप्त था और मनुष्योंको यह जान || पड़ता था मानो यह लवणोदधि समुद्र है ॥ ५ ॥ धलीशालके चारो ओर विशाल खाइयां शोभायमान थीं जो कि जलसे परिपूर्ण थीं । उनका जल सुगन्धित और उत्तम था। कमलोंसे व्याप्त था।
और सरोवरों के सम्बन्धसे उनका जल हिलता डोलता था इसलिये वे ऐसी जान पड़ता थी मानी ! ये अपनी चञ्चल क्रीड़ाओंमें मस्त हैं । खिले हुए मांति भांतिके वहां पर युप्पोंसे व्याप्त वाटिका अत्यन्त शोभायमान थीं जो कि भांति भांतिके पुष्यों के शृङ्गारते शोभायमान और हंसती हुई नियां | सरोखी जान पड़ती थीं ॥ ६-७ ॥भीतर एक सुवर्णमयो प्राकार शोभायमान था जो कि प्रत्यक, सुन्दर था और ऊंचाईसे ऐसा जान पड़ता था मानो यह आकाशके दो खण्ड कर रहा है। उसके ।
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