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७॥ सावधानत्वमाश्रित्य तृणु स्वं सादर यतः । भन्तासारविहीनामा प्रतियोधोऽपि दुःखप्ति ॥ ८ ॥ अन्तःसारविहोनानां बुद्धिः कापि न जायते । मलयाचलसंसर्गात वेणुश्चन्दनायते ॥ ६ ॥ अधासंख्यमहाद्वीपमध्ये राजेब राजते। जम्बूभूरहचिहत्वाजम्बुद्वीपो भिधानतः ।। १० । तम्मध्ये मेकराभाति नानारत्नविचित्रत्विर । षोडशाहन्महागारसंदर्भीकृतसत्तरः ॥ ११ ॥ विर मन्ति यतः स्त्र स्था मेष लोकः श्रुतका । असर:सजलश्लेषर्विवितेलातलागिरेः ॥ १२ ॥ अस्येय पश्चिमे भागे विदेशोऽपरसंजिकः । सार्थकोऽतो निदेहत्वं तपसा प्राप्नुवत्यहो ॥ १३ ॥ सीतोदानामतः सिंधुस्ताम्तेऽगाधसन्नदा । शतोन्नतमहाचैत्योद्भासितोभार्यकाः ॥ Ke
कि मलयागिरि चन्दनके सम्बन्धसे जिस प्रकार अन्य वृक्ष तो चन्दन स्वरूप हो जाते है परन्तु P2 वासका बृक्ष चंदन खरूप परिणत नहीं होता उसी प्रकार जो पुरुष अन्तः सार विहीन हैं कुछ भी
मनीषिता नहीं रखते उनकी बुद्धिपर भी धर्मोपदेशका असर नहीं पड़ता ॥ ४-॥ व असंख्याते द्वोपोंके मध्यभागमें एक जंबद्वीप नामका विशाल द्वीप है जो कि समस्त द्वीपोंका
राजा सरीखा जान पड़ता है तथा जम्बवृक्षके सम्बन्धसे ही उसको जंबूरोप यह प्रसिद्ध नाम है ।। जंबुद्वोपके ठोक मध्य भागमें मेरु नामका पर्वत है जो कि चित्र विचित्र रलोंकी प्रभासे देदोष्यमान
है एवं उसका तट बड़े २ विशाल मंदिरोंसे व्याप्त हैं । मेरु पर्वतकी पृथ्वीपर देवांगनाओंके मन 2 संघटनोंको सदा प्रतिविंव पड़ती रहती हैं इसलिये जो पुरुष स्वस्थ है–विषय भोगोंसे रहित हैं ये
भी उस पृथ्वीसे विरक्त नहीं होते उस पृथ्वीपर विहार करना आनंदप्रद समझते हैं यह बात लोक व प्रसिद्ध है ॥ १०-१२ ॥ मेरु पर्वतकी दक्षिण अणिमें विदेह नामका एक विशाल क्षेत्र है और से उसका नाम विदेह सार्थक है क्योंकि वहां तपोके द्वारा मनुष्य विदेह-देहरहित सिद्ध परमात्मा वन ।
जाते हैं। वहां पर शोतोदा नामकी विशाल नदी बहती है जिसका कि तलभाग अगाध है और । KI जिसके दोनों पसवाड़े विशाल सो मंदिरोंसे शोभायमान है । शीतोदा नदीके उत्तर तटपर,
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