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RETRYPROYERANSFERENCY
८६ ॥ संवरो द्विविधः प्रोक्तो मावद्रव्यप्रमेवतः मात्मनो भावतः कर्मानवस्य यग्निरोधन । ८७ ।। उक्तोऽसौ शानिभिर्नावःसम्बरः संघरात्मकः । प्रतेध गुप्तिभिध मरनुप्रेक्षादिभिः पुनः ।। ८८ ॥ चारित्रंण क्ष धादोनां जेतृत्वेनागत' धन । द्रव्यास्रवेण यत्पा वार्यते
द्रव्यसंवरात् ॥ ८६ ॥ निर्जरा द्विविधा ख्याता सषिपाकाविधाकतः । सर्वेषां सविपाका स्यादषिपाका हठादिप्ति || १० || भेदनमात्मको PO मोक्ष यात्मभावश्च कर्मणां । सर्वपां क्षयकारी यो भाषमोक्षोमुनीरितः॥ ११ ॥ ध्यान लथे महोत्रैश्च पृथाभावो हि कर्मणां । द्रव्य2 और परीषहजय रूप आत्माके भावोंसे जो आसूवके द्वारा आये हुए कमों का रुकना है उन व्रत
गुप्ति आदि भावोंका नाम भावसंवर है। यह भाव संवर संवर स्वरूप है अर्थात् किवाड़ लगा देने FE पर जिसप्रकार भीतर महलमें प्रवेश नहीं किया जाता उसी प्रकार जिस समय यह आत्मा संवर
खरूप परिणत हो जाता है उस समय आत्मारूपी महलके अंदर कमों का भी प्रवेश नहीं होता तथा
द्रव्यास्त्रवसे जो द्रव्यरूप कर्म गाते हैं उन जय काका जन गुप्ति समिति आदिके द्वारा जो रुक HS जाना है वह द्रब्य संवर है अर्थात् व्रत गुप्ति आदिके द्वारा मिथ्यात्व अविरति आदि भावोंका रुकना तो भाव संवर है और द्रव्यरूप कोका रुकना द्रव्य संवर है ॥ ८६-८८ ॥ सविपाक निर्जरा
और अविक निर्जराके भेदसे निर्जरा भी दो प्रकारकी मानी है। अपने आप फल देकर कर्माका खिर जाना विपाक निर्जरा कहलाती है प्रत्येक संसारी जीवके कर्म प्रतिक्षण फल देदे कर खिPA रते रहते हैं इसलिये सविपाक निर्जरा तो संसारी जीवोंके प्रतिक्षण होती रहती है । तथा तप आदि
के द्वारा जबरन कर्मोंका झडाना अविपाक निर्जरा हैं। यह तप आदिके आचरण करनेपर होती है |
द्रव्य मोक्ष और भाव मोक्षके भेदसे मोच तत्व भी दो प्रकारका माना है । गुप्ति आदि आत्माकेक PA भावोंके द्वारा समस्त कोका सर्वथा क्षय हो जाना भाव मोक्ष है तथा ध्यान अप मनका वश मक
करना, और उप तपोंके द्वारा जो द्रव्य कर्मोकी आत्मासे जुदाई कर देना है वह द्रव्य मोक्ष है
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