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मन उडुपेन मझाम्भोधित क्ष द्रो न शक यात् ।। ४६४ । स्थय भूरुवाच...अंजनोगनागानां पलमत्ति मृगाहितः । गोमाय न प्राणांते ।
तृणं वा रक्तकेसः ॥५६५ मधुरुधाच-जन्तयोऽपि बलाक्रांतभूमला भूतलातलाः । क्षिपनि ना तथा नन' कीनाशस्य मुखे कर ॥ ४६६ ॥ लाजकापुत्र ! रे नीचोत्सहसे किमु सांप्रतं । लब्ध्वा चक्र' न शक्तिश्चेवन्यथा क्षिपताजवात् ।। ४६७ ।। स्वयंभुवा तदा । मुक्त' चक्र मधुनराधिप द्विधा चऽथ कालस्य नियोगः केन नंध्यते । ४६८ ॥ रुदध्यानत्वतो मृत्वा गतः श्वदं तमस्तमः । मधु
सनी कृतं पापं भोक्तु धा रमन्नतः ॥ ४६६ ॥ अाशा ध्यानशे मस्र केशवस्य गगापुरः । वर्षाध' साधयित्या स बलेनामा I जो पुरुष अपने दिव्य बलसे समस्त पृथ्वीतलको व्याप्त करने वाले हैं और भूतलातलाःसमस्त पृथ्वोतलको पीडित करनेकी सामर्थ्य रखते हैं वे भी यमराजके मुखमें हाथ नहीं डालना चाहतेयमराजसे वे भी डरते हैं। रे दासी पुत्र ! यदि तेरे अन्दर किसी प्रकारका सामर्थ्य नहीं है तो तू चक्रको पाकर अब क्या विचार कर रहा है। यदि कुछ भी सामर्थ रखता है तो शीघ्र उसे मेरे ऊपर चला ॥ ४६०-४६७॥ प्रति नारायण मधुकी इतनी कड़ी बात नारायण स्वयंमूको कब सहन होने वाली थी बस उसनें शीघ्र ही राजा मधुके ऊपर चक्र चला दिया जिससे तत्काल उसके
शरीरके दो खंड हो गये.ठीक ही है जिस मनुष्यका जिसरूपसे मरण होना होता है नियमसे उसका | | उसी रूपसे होता हैं-कोई भी उसका उल्लंघन नहीं कर सकता। महा अभिमानी राजा मधुके परि-2
णाम मरते समय रौद्र ध्यान रूप थे इसलिये वह मरकर सातये नरक गया वैरसे जो पाप किया | IS जाता है वह नियमसे भोगना होता है ॥ ४६८--४३६ ॥ प्रति नारायण मधुके मरजाने पर अनेक ||
गुणोंके समुद्र नारायण स्वयम्भकी आज्ञा सर्वत्र फैल गई। भरत क्षेत्रके तीन खण्डोंको उसने सिद्ध कर लिया और वलभद्र धर्मके साथ सुखपूर्वक रहने लगा। वह पुण्यात्मा स्वयम्भ इन्द्रके समान |
निर्विघ्न रूपसे नाना प्रकारके भोग भोगने लगा अपने तीव्र प्रतापसे उसने समस्त शत्र ओंको kel जीतकर उनकी स्त्रियोंको दुःखी बना डाला। वह राजा स्वयम्भू शिष्ट पुरुषोंका अच्छी तरह पालन
प्रयकराव पवार
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