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पYAYAWAVA
४६० ॥ स्वयं भूख्याच-महीयासं प्रवृद्ध' च पृथक कातर स्त्रिय' । निरागसंघ शराणामसिन प्रसरेत्कदा ॥४६१ ।। मधुश्वाचIC बिमयोऽसि समुदतु येऽरितामसमित्रभाः । भूभर मलति शषः कूपशायौ व दर्दुः ।। ४६२ ।। स्वयंभूरुयाच- जगदोपि तमःसंघ' नयंत समतां जगत् ॥ चक्रऽभियोगमुष्णां शुः छेत्तुं नो विवरस्थितं ॥ ४६३॥ मधुरुवाच-पंगोर्जिगिमिपा र गतिन स्यात्प्रसारिणो।
जो बड़े हैं। वृद्ध हैं । वालक और भयभीत हैं। स्त्रियां हैं और निरपराध हैं उनपर वीर लोग - अपनी तलवार नहीं छोड़ते। मधु ने उत्तर दिया
जो महानुभाव शत्रुरूपी अन्धकार के लिये सूर्य समान हैं वे ही खगको धारण कर सकते हैं डरपोक नहीं । लोकमें यह किंवदन्ती है कि पृथ्वीके भारको शेष नाग ही धारण कर सकता है
कूपमें रहकर टर टर करनेवाला मैढक नहीं। उत्तरमें नारायण खयम्भ ने कहाkal जो सूर्य समस्त जगतके अन्धकारका नाश करनेवाला है वह विलमें रहनेवाले अन्धकारके नाश
करनेके लिये किसी प्रकारका उद्योग नहीं करता क्योंकि उस अन्धकारके नाश न करनेसे उसको महत्तामें किसी प्रकार की कमी नहीं मानी जाती । नारायण स्वयम्भ की यह बात सुनकर मधुने कहीं ___पंगु पुरुष यदि.यह चाहे कि मै मेरु पर्वत पर चढ जाऊ तो वह चढ़ नहीं सकता तथा क्षुद्र | पुरुष यदि यह चाहै कि मैं छोटीसी नावसे विशाल समुद्रको तर जाऊं तो वह तर नहीं सकता। रे
| स्वयंभ ! तुझ सरीखा क्षुद्र पुरुष मेरा क्या कर सकता है। उत्तरमें स्वयंभूने कहाkal केही अञ्जन पर्वतके समान विशाल हाथियोंका ही मांस खाता है यदि वह उसे न मिले
और उसके प्राण भी चले जाय तो वह शृगालका मांस नहीं खा सकता और न तण ही भक्षण कर सकता है। मधुन उत्तर दिया
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