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गपि । देवोऽमुना विना वासो भूपादिभिरिवान्वितः ।। ३२५ । मानभंगममुद्भ मदुःखदप कुलचेसा । कार रैयते मंपा चुनमंत्रो मुनेनं टः॥२८॥अब पुर्या धनेशाख्यो व्य म्हागे तस्य वा रतिः । मामा भूरिसमानांगो कमला पंकज क्षणा ॥३२६।। तयोःपुलोऽनि मृत्वा नटोऽसौ मृगकेतुः। सम्यांगो गातोरूपो शास्त्रशः प्राकृनायतम् ॥ ३३० ॥ अथान्योऽत्रास्ति मेघाख्यः श्रेष्ठी रायालयः प्रिया । कायां - को नाम तस्वस्य किन्नरो याहिर प्रिया ।। ३३१ ॥ विशालहृदयी फल्गुणेशलो रोजाडीं। ललदगतिं चकोराक्षी विकरियां त्वभूषण ॥ ३३२ ॥ एकदा तां सपालोक्य स्मरे पाहतमानसः । दथ्यो चित्त निजे चेनि :दुष्टमाओविधीयतः ॥ ३३३ ॥ संयोगमनया सक
॥३२६-३२७॥वस मानभंगसे जायमान दुखसे व्याकुल चित्तका धारक यह नट चंपापुरोस निकलकर - रेवतिक पर्वतपर पहुंच गया। किसी मुनिराजसे भेट हो गई। नटने उपदेश प्रात किया और वहीं से
अपने प्राणोंका विसर्जन कर दिया ॥ ३२८ ॥ म चम्पापुरीमें ही एक धनेश नामका व्यापारी रहता था उसकी स्त्रीका नाम कमला था जो कि रतिके समान परम सुन्दरी थी। सुगठित शरीरके अवयवोंकी धारक थी और कमल के समान दिशाल नेत्रोंसे शोभायमान थी। वह नट मरकर इन्हींके मृगकेतु नामका पुत्र हुआ जो कि पूर्वपुण्यके उदयसे मनोहर अङ्गका धारक था । बड़ा अभिमानो अत्यन्त रूपवान और परम विद्वान था । ॥३२६-३३० ॥ उसी नगरीमें एक भेघ नामका भी अत्यन्त धनवान पुत्र रहता था उसकी स्त्रीका
नाम कायांकी था जो कि अपनी अनुपम सुन्दरतासे ऐसी जान पड़तो थी मानो यह किन्नरी है ke वा नागकुमारी है। वह सेठानी कायांकी विशाल वक्षस्थलसे शोभायमान थी। महा मनोज्ञ स्तनोंक
धारक थी । सुन्दरता पूर्वक गमन करनेवाली थी। चकोरके समान नेत्रोंकी धारक थी और पर
युवावस्थाले शोभायमान थो॥ ३३१-३३२ ॥ व्यापारीपुत्र मृगकेतुको एक दिन कायांकी पर दृष्टि 15 पड़ गई उसे देखतेही मृगकेतुका चित्त कामसे पीड़ित होगया। निर्बुद्धि के चित्तमें सदा दुष्ट ही
विचार हुआ करते हैं इसलिये वह अपने मनमें यह विचार करने लगा कि-यदि इस सुन्दरीके साथ
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