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चन वे जोषितं धनं । वैयथ्यं सानं सौख्यं कि दुशित्तेहि प्राम्यते ॥२३४ा इत्युक्त्वा सैकदा तेन मोः भोः पनायो रे ! । पहि मारानिद मां भुन्योरंतरे कुरु.॥ ३३५ ॥ तन्तु का कटक अत्यागता सदा प्रनोच्छया । उपम्या विहिताम्तेन भूग्योऽकरतानाः । १३६ । प्रागनुबंध दृते थेऽपि समोहतऽनुवन्धक । तेषां हि फलमेवार्निवनवै धिवक्षणाः ॥ ३३७ ॥ भसौ राजानमालाद्य गणेति बचः प्रियं । हे देव ! सिंहलद्वीप गांधिलो विद्यते वयः ॥३३८॥ श्रुत्वा परिवृतः प्राह किमर्थ तत्प्रयोज । अनमीत्त मदांधश्च शृणु र
संयोग नहीं हुआ तो मेरा जीवन धन महल मकान और सुख सारे व्यर्थ हैं ठीक ही दुष्ट चित्तमें | प्रशंसानक विचार हो ही कमा सकते हैं ! वस एक दिन वह सेठानी कायांकाके पास पहुंचा और
उससे इसप्रकार कहने लगा___सुन्दरी ! तुम विशाल स्तनोंसे शोभायमान परम सुन्दरी हो मेरा हृदय कामाग्निसे प्रचलित हो रहा हैं तुम्हें मेरे ऊपर प्रसन्न होना चाहिये ॥ ३३३-३३५ ॥ सेठानी कायांकीकी मृगकेतुरे । साथ दिलकुल रमण करनेकी इच्छा न थी इसलिये मृगकेतु के वचन उसे कड़वे जान पड़े वह चुप चाप अपने घर में घुस गई-मृगये तुकी वातका उसने कुछ भी उत्तर नहीं दिया । यद्यपि भृगो तुने | उसके राजी करने के लिये बहुतसे उपाय किये परन्तु वे सब निष्फल ही हुए ॥३३६ ॥ ठीक ही हैं
जो मूर्ख मनुष्य पूर्वभवके सम्बन्धके बिना ही जवरन किसीसे प्रेम करते हैं उन्हें उस प्रेमका. फल मृत्यु ही मिलता है ऐसा वई २ विद्वानोंका मत है ।। ३३७ ॥ जब मृगकेतुकी कुछ भी तोन पांच न चलो तो वह सीधा राजाके पास गया और उससे इसप्रकार प्रिय वचनोंमें कहने लगा
महाराज. सिंहल द्वीपमें एक महा मनोज्ञ गंधिल नामका पक्षी रहता है वह यदि इस देशम आ जाय तो बहुत ही अच्छा हो। उत्तरमें राजाने कहा वह पक्षो यदि यहां आ जाय तो उससे क्या प्रयोजन सटेगा ? इसके उत्तर में मदांध मृगकेतुने कहा---प्रभो ! जिस राष्ट्र घर और राज्यमें वह
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