________________
पुरार
ReKYCHYAYE
T
41 अथैकता समायातो मेघास्यः सिंगलादतं । अलब्ध्वा पक्षिणं मासे षष्ठे मानधनो धनी ॥ ३५२ ॥ तद्वत्तमुदितं तस्य पुरस्ताद्भाय या
खिलाश्रुत्वोत्थाय व्यधान्चित्रमिति श्रेष्टी विचारवित् ॥ ३५३ ॥ निष्कास्य सैनसं वाधे कृषीभूयासितं बल' । नानाहारीतपक्षश्च जिंतुरचितांग ॥ पालापर्ण
निमुमोचेशानसन्निधौ । जगायिति ततोराजन्नानोतोऽय विचित्रविः ।। ३५५ ॥ तं ट्ना नागरा: सभ्या योषितश्च विनोदतः । अहासुस्नोलयंतिस्म राजामात्यादयोऽपि च ।। ३५६ ॥ धनेशस्य कुपुत्र तं मत्वा संज्ञा निभासतः । निःसारितः पुगई शाच्चादेवे कुतपोषिधिः ॥ ३५७ ॥ पूर्ववैरानुषंगत्वान्निदाननिधन' गतः । यातुधानो महदंष्ट्रो म राजाकी आज्ञासे श्रेष्ठी मेघको सिंहलद्वीप तो जाना पड़ा था परन्तु जब उसे वहाँ पर वह
गंधिल पक्षी नहीं मिला तो वह छठे महिने शीघ्र ही वहांसे वापिस आ गया। जिस समय वह अपने घर आया तो सेठानी कायांकीने मृगकेतुका सारा वृत्तान्त अपने पति मेघसे कह सुनाया। वह सेठ
एक विद्वान और विचार शील व्यक्ति था इसलिये उसने मृगकेतुको अपने कियेका फल चखाने - लिये यह आश्चर्यकारी उपाय रचा- गढ में पड़ा पड़ा पापी मृगकेतु चिंता और दुःखसे एकदम
कृश और काला पड़ गया था। मेघने उसे बाहिर निकाला। हरे वर्णके पंखोंसे और सिन्दुरसे उसके शरीरको सजाकर उसे चितकवरा बना दिया। नगरके ईशान कोंनमें उसे छोड़ दिया एवं राजाके |
समीप जाकर यह कहा-हे राजन् । मुझे जो गन्धिल पक्षीके लानेके लिये प्रोज्ञा दी गई थी वह | है गंधिल नामका विचित्र पक्षी मैंने ला दिया है और वह यह है ॥ ३५२–३५५ ॥ श्रेष्ठी मेघका की बात सुनकर और मृगकेतुको देखकर नगरवासी समस्त सभ्य लोग स्त्रियां राजा और मंत्री आदि Pr
समस्त जन ताली पीट पीट कर हंसने लगे और खिल्ली उडाने लगे। व्यापारी धनेशके पुत्र मृगकेतु को कुपुत्र समझ कर राजाने उसे बहुत दण्डित किया और राजधानी एवं देशसे वाहिर निकाल दिया। ठाक ही है जिसका भाग्य अच्छा नहीं होता वह निन्दित कार्यका ही आचरण करता है। पूर्व वैरके सम्बन्धसे मृगकेतुने नगरके बिनाशका निदान बांध लिया जिससे मरकर वह राक्षस हो
पका