________________
KRपहपकपए
मूढः छिनत्यज्ञानलोचनः । पंगुः स्यादृष्टवेतस्कः पशुपादविनाशकः ॥ २१७ ॥ तपांसि दुस्कराणि ये वितन्यति सदा मुदा । तप: कृतां च शंसते सुरूपाः कामयतके ॥ २१८ ।। तपः कत्तु न शका ये तत्कृतां निंदयंति या । कुरूपा विकलांगाश्च कृशागास्ते भवंति च ॥ २२१अकामनिर्जरा कृत्या नियंते ये चक्रोधतः । वेदमासहिता जोपास्ते भवति भवे भवे ॥ २२० । मुनीनां धर्मलीनानां शुवर्षा कुमो हि यः। निर्वेदो बलवान् प्राशुभवावलियमः ॥ २२१ ॥ कंदमूलाशिनो जीवा कर्षिणः शन्यवादिनः । एकाक्षा: स्थावरा मृत्वा भवेति पंकपाकतः ॥ २२२ ।। पञ्चाक्ष बहवो भेशाः संति दुःखसुखत्वतः । बहन्नामलया पुण्यपाफ्लक्षणलक्षिणः ॥ २२३ ॥ धर्मभवाः सदाचाराः गुरो चिनयिनश्च थे । भल्पसंसारिणः स्युस्ते वियुक्ता विलक्षणाः ॥
दुष्ट चित्तके धारक एवं पशुओं के पैरोंको नष्ट करनेवाले संसारमें पंगु होते हैं ॥ २१७ ॥ जो महाAनुभाव आनन्दित हो घोर तपोंके तपनेवाले हैं और जो तप करनेवाले हैं उनकी प्रशंसा करते हैं वे
कामदेवके समान रूपवान उत्पन्न होते हैं ।। २१८ ।। जो दुष्ट पुरुष तपोंके आचारण करनेमें असमर्थ हैं और जो तपोंको आचरण करनेवाले हैं उनकी निन्दा करते हैं वे मनुष्य संसारमें महाकुरूप एवं विकल और कृश अङ्गके धारक उत्पन्न होते हैं ॥ २१६ ॥ जो जीव अकाम निर्जरापूर्वक क्रोधसे - प्राणोंको छोड़ते हैं वे भव भवमें अनेक प्रकारकी वेदनाओंके धारक उत्पन्न होते हैं ॥ २२० ॥ जो
महानुभाव सदा धर्ममें लीन मुनिराजोंकी सेवा सुश्रूषा करते हैं वे संसारमें किसी भी वेदनाका सा- IS 4 मना नहीं करते तथा वे भगवान वाहुवलीके समान महा वलवान और उच्च अवगाहनाके धारक
होते हैं ॥ २२१ ॥ जो जीव कन्द मूल के भक्षण करनेवाले हैं । जमीन मादिको वृथा कुचेरनेवाले
है। शन्यवादी हैं वे अपने कर्मके अनुसार मरकर एकेंद्री स्थावर होते हैं ॥ २२२ ॥ पचेन्द्री जीवोंके | PA बहुतसे भेद हैं वहुतसे उनमें दुःखी और सुखी हैं । भगवान अहंतके गुणोंमें मग्न हैं एवं पुण्य और
पापोंसे युक्त हैं ॥ २२३ ॥ जो महानुभाव समीचीन धर्मके भक्त हैं । उत्तम आचारोंके आचरनेवाले 2 हैं एवं सदा निग्रंथ गुरुओमें विनय भाव रखनेवाले हैं वे महानुभाव अल्प संसारी होते हैं थोड़े ही
पापा