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समायातान् विलोक्य नृपसन्निधौ । २३२ ॥ तवैव भविता पुत्रो भो कांतेऽभोजलोचने । इत्युबाघ नु पो भार्या श्रुत्वा तुष्टा गतायं २१३ (युग्म) प्रहारकत्रिखण्डविभूतिधरः परः । स्वर्गायातो गमीरो को भूरिविक्रमी ।।२६४ ॥ ततः सोऽप्यवतीयस्या गर्भेऽभूच्वंद्रमःप्रभे । स्वयंभूरिति विख्यातो नामनैव सुनुषु प्रियः ॥ २१५ ॥ रूपवान् कामवत्याही जीववशालचंद्रश्त् । पतेहम गुणागार लक्षणान्तविग्रहः || २१६ धर्मो यलः स्वयंभूश्व केशवस्तौ परस्पर' । अभूतां प्रेमसंपन्नौ धात्रा प्रेरणा कृताविश्व ॥ २९७ ॥
कालकी नित्य क्रियाओं को समाप्त कर वह अपने स्वामी राजा भद्रके पास आई और सारे स्वप्नों को निवेदन कर उनके फल जाननेकी अभिलाषा प्रगट करने लगी ॥ २८७ - २६२ ॥ उत्तर में राजा भद्रने कहा-
हे कमलोंके समान नेत्रोंसे शोभायमान प्रिये ! तुमने जो स्वप्नमें सूर्य आदि देखे है उनका फल यह है कि तुम्हारे एक अद्वितीय पुत्र होगा जो कि संसार में अत्यन्त प्रतापी होगा । समस्त लोगोंके चित्तोंको आनन्दित करेगा। तीन खण्डकी विभूतिका धारक अर्धचक्री होगा । खर्ग से - | यकर वह तुम्हारे गर्भ में अवतरेगा । अत्यन्त धोर गम्भीर होगा एवं अत्यन्त पराक्रमी होगा । वस राजा भद्रके मुखसे ये आनन्द प्रदान करनेवाले वचन सुन रानी पृथिवीमतीको वड़ा आनंद हुआ और संतुष्ट हो वह अपने महलको लोट गई ॥ २६३-२६४ ॥ कुछ दिन बाद राजा सुकेतुका जीव वह देव भी रानी पृथिवीमतीके चन्द्रमाके समान निर्मल गर्भ में अवतीर्ण हो गया । संसारमें स्वयंभू नाम से उसकी प्रसिद्धि हुई और अनेक पुत्रोंके रहते भी वही सर्वोको प्रिय लगने लगा | ६.५ वह कुमार स्वयंभू कामदेवके समान रूपवान था । जीव नामक विद्वानके समान बुद्धिमान था । दिनों दिन वाल चन्द्रमाके समान बढ़ता था। अनेक गुणोंका भण्डार था एवं उत्तमोत्तम लक्षणों से विभूषित शरीरका धारक था ॥ २६६ ॥ वह धर्म नामका वलभद्र और स्वयंभू नामका नारायण
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