________________
मल
६५
YAYAA
最幣局整備
स्तयः || १२ || (युग्मं)उदिते श्रदिवाना नाना गारकारिणः । आजग्मुर्मण्डपं सर्वे राजपुत्राः इवामराः ||१३|| केचिद्धसकरः केचि• च्छुकहरुता मोडुराः । भ्रमयतः क केनित्केचिच्च स्मितकारिणः ॥ ६४ ॥ धात्रीस्कंधकरा नानाकौतुका राजपुत्रिका द्रष्टु समाटिना तत्र राजन्यान् मंडपे त्वरा ॥ ६५ ॥ कंचुकी तो जगादेति पुलि ! शृणु बचो मम । एतेषां शुभतमं भूपं वृणीश्च त्वं समादरात् ॥ ६६ ॥ विलोक्य भूपतीन् सर्वान् सुदरानप्यभाचत । मंदारमालिकाभावानातानमत्पुरं ॥ ६७ ॥ षण्मासावरिथं स्थिता
आकार और ललाईसे कन्या परम सुन्दरीके उगने के लिये मन्दार वृक्ष के पुष्पों की आकृति बतलाता हुआ अन्धकारको जड़ से भगा रहा है ॥ ६१-६२ ॥ इस प्रकार सूर्यदेव के उदय हो जाने पर समस्त राजकुमार अपनी अपनो शय्याओंसे उठ गये । प्रातः कालीन नित्य क्रियायें की । नाना प्रकार के श्रृंगार कर अपना शरीर सजाया एवं जिसप्रकार देव आते हैं उसप्रकार वे स्वयम्बर मंडपमें आकर अपने अपने स्थानोंपर बैठ गये ॥ ६३ ॥ उन राजकुमारोंमें कई एक राजकुमार हंसके समान हाथोंके धारक थे। कई एक शुक तोतों के समान लालिमा को लिये हुए हाथोंसे शोभायमान थे । अनेक मदोन्मत्त फूल हाथोंमें लेकर उसे घुमा रहे थे और बहुतसे मन्द मन्द मुसका रहे थे ॥ ६४ ॥ जिसका एक हाथ घायके कंधे पर रखा हुआ है और जो नानाप्रकारके कौतुहलोंसे शोभायमान है ऐसी वह कन्या समस्त राजाओं के देखनेके लिये शीघ्र ही उस स्वयम्बर मंडपमें आई एवं जिस समय वह वहां पर आकर खड़ी हुई तो कंचुकी उससे इस प्रकार कहने लगा
प्रिय पुत्री ! मेरी बात सुनो । इस समय समस्त देशोंके राजा इस स्वयम्बर मंडपके अंदर विराजमान है इनमें से जो तुम्हें पसंद हो अच्छा लगता हो उसे ही आदर पूर्वक वर लो॥६५-६६ ॥ कन्या परम सुन्दरीने समस्त राजाओंकी ओर दृष्टि डाली परन्तु मन्दार पुष्पों की माला एक केभी गलेमें उसने नहीं देखो इसलिए अत्यन्त सुन्दर भी उन राजकुमारोंमें से एकको भी उसने नहीं वरा और वह सीधी अपने राजमहल लौट गई ॥६७॥ अनेक मानसिक कौतूहलोंसे परिपूर्ण वे समस्त
都でお蔵
絶対に使わ