________________
ना०
ICC
मुख्यानो नमोराजैव वैमलः । चित्रान्योतोऽतरीक्षस्थस्तारकाणां समांतर ।। ५३ ॥ अथ जम्बुमति दोपे भारत भारतभृता पखंडि विद्यते तत्र सौराष्ट्रो विषयः स्मृतः ।।५।। पुरी द्वारवती तत्र शोभाया परमोत्लया । स्वर्णरतमहावित्रयुतप्रासादमंजिना। ॥ ५५ ॥ कामरूपनराकीर्णदुर्गवैषम्यदुर्जया । उन्नितयकालापास्यपीनवक्षोनभामिनी ॥ ५६ ॥ सत्यधर्मदयादामसरोधापीगृहा. धिता। पर्ततेऽमरपूर्वा सा दीर्घा हिनषयोजनौः॥५४॥ त्रयोदशभिरेवेयं विस्तरा योजने । द्विसहस्रलघुद्धारमंडिता मगधा
धिप ! ॥५८ ॥ ( चतुर्भिः कलापक धर्माख्यधलिसंयुक्तः स्वयमूर्भरतार्धवाक् । भूखेचरनराधीशसेव्यस्तो पाति शक्रवत् ॥ ५ ॥ तुतारा गणोंके मध्यमें आकाशके अंदर रहने वाला चंद्रमा चित्रा नक्षत्र के साथ शोभा धारण करता
ई उसीप्रकार मुनि आदि गणोंके मध्यभागमें विराजमान आकाशमें अधर रहनेवाले वे भगवान ! H| विमलनाथ अत्यंत शोभित होते थे॥५३॥ .. ___ इसी जंबूद्वीपके अंदर अनेक भव्योंसे व्याप्त और छह खण्डोंका धारक एक भरतक्षेत्र नामका प्रसिद्ध क्षेत्र है। उस भरत क्षेत्र के अंदर एक सौराष्ट्र (सोरठ ) नामका देश विद्यमान है ॥ ५ ॥ सौराष्ट्र देशके अंदर द्वारिका नामकी नगरी है जो कि नाना प्रकारकी शोभानोंसे शोभायमान है। भांति भांतिके सदा उसमें अनेक उत्सव हुआ करते हैं एवं सुवर्ण और रत्नमयी अनेक उत्तमीत्तम प्रतिमाओंसे मंडित जिन मंदिरोंसे व्याप्त है ॥५५॥ वह द्वारिकापुरी उससमय विशाल नितम्ब लंबी चोटी मुख और स्थ ल स्तनोंसे शोभायमान स्त्री सरीखी जान पड़ती थी क्योंकि जिसप्रकार सुंदर श्री अनेक सुदर पुरुषोंसे व्याप्त रहती है उसीप्रकार वह नगरी भी महामनोहर पुरुषोंसे भरी हुई यी तथा सुंदर भी स्त्री जिसप्रकार विषम-कुटिलाईको लिये होती है उसीप्रकार वह पुरी भी अनेक
विशाल विशाल किलोंसे विषम थी-शत्रुओंके अगभ्य थो॥ ५६ ॥ वह द्वारिकापुरी सत्य अहिंसा kधर्म दया दान सरोबर बावड़िये और घरोंसे व्याप्त थीं इसलिये वह स्वर्गपुरी सरीखी जान पड़ती
थी और नौ योजन प्रमाण लम्बी थी। तेरह योजन प्रमाण चौड़ी एवं दो हजार छोटे २ दरवाजों से शोभायमान थी ॥५७ १५८॥ उस पुरीका रचक स्वयंभू नामका नारायण था जिसका बड़ा भाई ।
उपपपपपपपपपपयार
स्वापार