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मागमश्चन्दन मे ते सुधा वापरसायनं ॥ ३५॥ अद्य कामबुधायाता कल्यागः परम पद वाकाले वृष्टिराकाशादु ग्यपेताम्राग्मम गृहे
॥ ३६॥दोदलासि मे देव! दृष्ट्वा त्वा धारिराशिना । पर्व ग्लार्य महाभव्ययकोराहाददायिनं ॥३७॥ स्तुत्वेति चरणोक्षाल्य नषधा १५६
पुण्यमर्जयत्। सप्त सद्गुणितं दानमयच्छत्रमस्मकै ॥३८॥ नपागारे तदा पंचाधाय' जातमिति स्फुट । दुन्दुमिरनसौगन्धिषा ताम्भोवृष्टिसोत्सवाः ॥ ३६॥ पात्रदानात्परं पुण्यं नाभून्नास्ति भविष्यति । यतो देवागमस्तस्मारिक दुराप्यं जगत्त्रये । ४. ॥ अपि
आपका आना शीतल चन्दन अमृत वा रसायन सरीखा हुआ है क्योंकि चंदन आदिके संसर्गसे जिस प्रकार ताप मिट जाता है उसी प्रकार आपके समागमसे मेरा भी जन्म आदिका ताप मिट जायगा ॥ ३५ ॥ प्रभो ! आपके आनेसे आज मैं यह समझता हूं कि मेरे घरमें कामधेनु आ गई वा कल्प वृक्ष आगया किंवा आज मुझे परम पदकी प्राप्ति होगई अथवा वर्षाका समय न रहने पर
भी मेरे घरमें आकाशसे वर्षा हो निकली ॥ ३६॥ जिस प्रकार चन्द्रमाको देखकर समुद्र लह लहा 4 उठता है उसी प्रकार हे देव ! आपको देखकर मेरा हृदयरूपी बिशाल समुद्र मारे आनन्दके उमड़ रहा है तथा चन्द्रमाको देखकर जिस प्रकार चकोर पक्षीको परम आनन्द होता है उसी प्रकार
भगवन् ! आप भी महाभव्य रूपी चकोर पक्षियोंको आनन्द प्रदान करने वाले हैं ॥३७॥ बस इस | Calप्रकार भगवान विमलनाथकी स्तुतिकर राजा विजयने उनके चरणोंका प्रवाल किया। नवधा + |
भक्तिसे जायमान पुण्यका उपार्जन किया एवं दाताके सात * गुणोंसे शोभायमान क्षीरका | आहार उन्हें दिया ॥ ३८ ॥ राजा विजयके घरमें भगवानके आहारसे जायमान पुण्यसे 2 ___+ प्रतिमाह-तिष्ठ तिष्ठ तिष्ठ, ऐस तोन बार कहकर खड़ा राखे।२ मुनिको उच्चस्यान देवे। मुनिके चरणोंको प्रमाणीक प्रासुक जलसे धोवे 1४ मुनिकी पूजा करें। ५मुनिको नमस्कार करें। ६ दाता अपना मन शुद्ध राख्। ६ दाता अपना वचन शुद्ध राखें । ८ दाता अपना शरीर शुद्ध राखें। दाता मुनिराजको शुद्ध भोजन दे। यह नौ प्रकारकी नवधा भक्ति कही जाती है। ** दाताके दान देनेमें धर्मका श्रद्धान हो। २ साधुके रत्नत्रय आदि गुणोंमें मनुराग और भक्ति हो । ३ दाता दयावान हो । ४ दाताको दानकी शुद्धता अशद्धताका ज्ञान हो । ५माता इसलोक परलोक संबन्धी मोगोंकी थमिलापासे रहित हो । ६ छाता क्षमाधान हो । तद दामदेनेकी सामर्थ्य रखता हो।
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