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द्वशां परैषां भूरुां चैतत्स्वस्मात्स्वस्थ कथं न सा ॥ २३ ॥ एवमादि वचो देव निशम्य नितरां हृदि । जरणमिव त्याच पत्यं तदाऽमुना ॥ २४ ॥ अभिषिच्य ततो लेखाः पुरस्तात्संस्थिता यदा । देषदत्तां समारुह्य शित्रिकाममरामृतः ॥ २५ ॥ राजन्यैरुतः सप्त पदानि परमादरात् । षण्णवतिप्रमैः शक तो नृपसंयुतः ॥ २६ ॥ सहेतुकमलोद्याने स्थित्वा मणिशिळातले । तत्याज द्विविधं संग सहस्त्रनृपसेचितः ॥ २७ ॥ पर्यकः सनमारुदो ध्यानस्तिमितलोचनः। नमः सिद्धमिति प्रोक्त्वा प्रग्राज जगद्यशाः । शुक्ले मात्रे चतुर्थ्या व दिनांते जन्मभ जिनः ॥ २८ ॥ दीक्षाभ्युदयमान कुर्महन्नाथाः सुरान्विताः । स्तुत्वा मत्या जिनं भक्त्या जग्मुरानन्दतो अन्य मनुष्यों को मोन प्राप्त हो जाती हैं तब स्वयं आप तो उसे प्राप्त करेंगे ही मोच लक्ष्मीको हस्तगत करने का पूरा अधिकार आपको है इसलिये अब आप शीघ्र दिगम्बर दीक्षा धारण कर संसारका उद्धार कीजिये ॥ २३ ॥ बस लोकांतिक देवोंके इसप्रकार सार गर्भित वचन सुन भगवान विमलनाथने जीर्ण तु के समान समस्त राज्यका परित्याग कर दिया ॥ २४ ॥ दीक्षा कल्याणके उपलक्ष में देवोंने उनका अभिषेक किया । समस्त देव पालकी तयारकर भगवानके सामने खड़े होगये अनेक देवोंसे व्याप्त वे भगवान शीघ्र ही पालकी में सवार होगये। सात पेड़तक राजा लोग बड़े आदर से उनकी पालकी ले चले। उसके बाद इंद्रोंने उनक पालकी लेली छियानवे पेड़ प्रमाण इंद्रगण उसे जमीन पर ले चले, पीछे आकाश मार्गसे ले जाकर सहतुक नामके विशाल उद्यानमें इंद्रोंने उस पालकीको ले जाकर रख दिया। उद्यानकी मणिमयी शिलापर वे भगवान जिनेंद्र विराजमान होगये । बाह्य अभ्यन्तर दोनों प्रकारके परिग्रहका उन्होंने परित्याग कर दिया | हजार राजाओं के साथ दिगंबर दीक्षा धारण करली। पर्यंक आसन मांडू लिया | ध्यान मुद्रासे नेत्रोंको निश्चल कर लिया तथा समस्त जगतमें जिनकी कीर्ति व्याप्त है ऐसे उन भगवान विमलनाथने माघ सुदी चौथ के दिन जब कि जन्म नक्षत्र विद्यमान था 'सिद्धोंको नमस्कार हो' ऐसा कह कर दिगंबरी दीक्षा धारण कर ली ॥ २८ ॥ अनेक देवोंसे व्याप्त इंद्रों
奇都育育作で初に耐でみた
EKERPREKY
व्यजय जय