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ष्ठायां मेथूनद्धभः । चतुरशोतिसहसूश्च योजनेरुन्नतः स्फुटं ॥ ८ ॥ गगनं जिगमिषुः स्वर्ग' नु धरित्री स्ततोऽथवा । शांतकुम्भ | मयम्नमो गगनोद्वार हेतुतः । चतुर्वनात्मको लेख कदंबकश्षेिचित्तः । सुरस्त्रीणां कुचायात कठिनोकतसत्तटः ॥ १०॥ अपसरो रति सौगंन्युद्गारसंटीनपटादः। सुरजाते जिनेंद्राणां नादहश्चत्य मंडितः ॥२२॥ चतुर्भिकलापकां गस्य पश्चिम दिग्भागे नद्याः सदक्षिणे
तटे । महापद्मास्यदेशस्य मध्ये सनीय खंडक: 221 साये मते टायो विषयो रम्यकावती । नानाशोमासरः पसांदृष्टयो मलामपि ॐ ॥ १३ ॥ गोपुरोधासिशालानि यत्र भांति पुराणिच स्वर्णहाणि प्रौढानि विद्वज्जन कुलानि च ॥ १३ । यव खेटा विराजते सरित्यIAS इलो धातकी खंडकी पश्चिम दिशामें मेरू पर्वत है जो कि सुवर्णके समान प्रभाका धारक और Ka चौराणी हजार योजन ऊंचा उठा हुआ है सो ऐसा जान पड़ता है मानो यह स्वर्ग जानेका इच्छुक
है अथवा पृथियोरूपी स्त्रीका उन्नत कुच है वा निराधार आकाश नोचे गिर न पड़े इसलिये उसे | रोक कर रखनेवाला सुवर्णमयी स्तभ है। यह मेरु पर्वत नंदन वन आदि चारों वनस्वरूप है। देवों के समूहले समूह यहांपर विहार करते हैं । इसके तटभाग देवांगनाओं के घटनोंसे अत्यंत कठिन
है। देवांगनाओंकी रतिसमयकी सुगंधिमें मत्त होकर सदा भोरें उसपर भुन भुनाट करते रहने है. 12 अनेक डेबॉसे नाना प्रकार पजनीक है और भगवान जिनेंद्रोंकी प्रतिमाओंसे मंडित हैं ॥ ५-११ ॥
उसो मेरु पर्वतकी पश्चिम दिशामें नदोके दक्षिण तटपर महापद्म देश के ठीक मध्यभागमें तीसरा खंड है उस तीसरे खंडके मध्यभागमें एक रम्यावती देश है जो कि महामनोहर हैं। अनेक प्रकार की शोभाओंका स्थान है एवं मनुष्य और देव सवोंके लिये एक दर्शनीय पदार्थ है ॥ १२–१३॥ इस रम्यकावती देशके गोपुर-सदर दरवाजोंसे चम चमाते हुए प्राकार और पुर अत्यंत शोभाय मान जान पड़ते हैं। धनिकोंके घर सुवर्णमयी बने हुए हैं और वहां के विद्वान लोग अनेक प्रकारकी विद्या और कलाओं में प्रौढ़ हैं ॥ १४ ॥ इस रम्यकावती देशके खेट चारों ओरसे नदी और पर्वतोंसे थेष्टित महामनोहर जान पड़ते हैं और कर्बट चारों ओरसे पर्वतोंसे अत्यंत रमणीक दीख
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