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र्भावे विशेषतः ॥ ११४॥ जन्मोत्सव महागानेस्तालैरानकवादनैः । ढालेर्मिलनकै दवे ननानाटक जातिभिः ॥ ११५ ॥ अष्टभ्रमणैर्भयो. रत्नवंशरसैः रसैः । अनुकूलैर्महाराश्चकुरानंदनाटकं ॥ ११६ ॥ ततौ भूषणसद्व भूषयित्वा प्रपूज्य च । धन्यौ पुण्याविति स्तुत्य पितरौ देवव्यर्थितौ ॥ ११७ ॥ वयो योग्य नियोज्यवियर्थः स्थानं पुरुहूतोऽगमत्तदा ॥ ११८ ॥ अथ राजा चकारोच्त्रैर्जेन्मजात महोत्सवं । पुरं शृंगारयामास पताका तोरणालिभिः ॥ ११६ ॥ ददौ राजा परं दानं हेमरत्न सुमिश्रितं । स्वयं जन्म शुभं मन्ये प्रदो हि सुतोत्सवः ॥ १२० ॥ दुदुभीरारटीतिरुम धेनुः स्वानकराशयः । वंदिनोऽधिरदायंत बभूवुः शंखद्रवा ॥ १२१ ॥ भाषणकलरिकारावा रेजुः पटहराजयः । ननृतंनिस्म नर्तक्यो मना किं वर्ण्यते मया ॥ १२२ ॥ एधतेस्म सुखं वालो द्वितीया बड़े देव आपकी पूजा करने वाले हैं इसलिये आप धन्य हैं इस प्रकार उनकी बड़े प्रमसे स्तुतिकी ॥११७॥ इंद्रने भगवानकी ही उम्र के देवोंकी उनके साथ खेलने के लिये योजना करदी । अनेक देवोंसे वेष्ठित वह अपने स्थान पर लौट गया एवं अन्य देव भी अपने अपने स्थानों पर चले गये ॥ ११८
इस प्रकार देवों के द्वारा जिनेन्द्र भगवान के जन्मोत्सव के किये जाने के बाद राजा कृतवर्माने भी उनका जन्म महोत्सव मनाया। पताका और तोरणों की पक्तियोंसे उसने सारा नगर सजवा दिया ॥ ११६ ॥ बहुतसे स्वर्ण और रत्न दानमें दिये और भगवान जिनेन्द्रकी उत्पत्तिसे अपने जन्मको धन्य समझा । ठीक ही है पुत्रको उत्पत्ति विशेष हर्षको करने वाली होती हैं ॥ १२० ॥ | उस समय भगवान जिनेन्द्र के जन्मोत्सव के उपलक्ष में दुन्दुभी बाजे बजने लगे । नगाड़ों के शब्द होने लगे। बंदीगण विरद बखानने लगे। शंखों के मनोहर शब्द होने लगे । झालरी और पटह जाति वाजों के मनोहर शब्द सुने जाने लगे एवं नाचनेवाली आनन्द नाच नाचने लगीं विशेष क्या | उस समयकी विभूतिका वर्णन करना शक्तिके बाहिर है ॥ १२१ ॥ १२२ ॥
जिस प्रकार द्वितीया का चन्द्रमा दिनों दिन बढ़ता चला जाता है । उसी प्रकार बालक रूप | भगवान विमलनाथ दिनों दिन सुख पूर्वक बढ़ने लगे एवं महा मनोहर भांति भांति के रूप धारण कर देवगण उन्हें हंसाने खिलाने लगे ॥ १२३ ॥ भगवान बासुपूज्यका तीस सागर प्रमाण तोर्थकाल
पत्रपत्रक
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