________________
नल०
०
प्रणय
VERY
(चतुरस्यं धोऽयं श्लोकः ) समासमसमः सौम्य सोमास्योऽसाम्यर्शसिमः । अमाननः सुमानतः कोऽयति दुस्तराङ्गवात् ॥ ७३ ॥ ( एकपादोनयमकालंकारः ) जिनगर्भप्रभावेन सर्वप्रश्नोत्तरं ददौ। सुशानमुनियन्माता देवोभिर्यादिता सती ॥ ८४ ॥ अपत्नीरूपसर्वाधि पाधिकवत् । यि शिवकर कि भो अलयि शुभ्रवं नृणां ॥ ७५ ॥ (अंतर्लापिका) गर्भभारवलीभङ्गो न जातो मातुरेव हि । गूढ गर्भस्थत बाधा नाजायत कदाचन ॥ ४६ ॥ सुखशय्यासनं पानं रूवं गतिमती सतः । सुविधा पुण्यगर्भ प्रसादतः ॥ हैं रक्त पादमें यमक नहीं ॥ ६६-७२ ॥ माता जयश्यामाके गर्भ में भगवान जिनेन्द्र थे इसलिये उनके प्रभाव से देवियोंने जो भी प्रश्न किये थे माताने उत्तम ज्ञानके धारक मुनिके समान समस्त प्रश्नोंका खुलासा रूपसे उत्तर दिया था ॥ ७३ ॥
गर्भ जैसा जैसा बढ़ता जाता है स्त्रियोंका उदर भी बढ़ता चला जाता है और उदर पर जो त्रिबली रहती है वह भी नष्ट हो जाती है परन्तु माता जयश्यामाका गर्भ यद्यपि दिनों दिन बढ़ता जाता था तथापि उनके उदरकी त्रिवली नष्ट नहीं हुई थी। उदर बेसाका वैसा ही विद्यमान था तथा माता जय श्यामाका गर्भ गुप्त था किसीको जान नहीं पड़ता था इसलिये गर्भ के समय जिस प्रकार अन्य स्त्रियों अनेक प्रकार की बाधायें होतीं है उस प्रकार माता जयश्यामाको किसी समय कैसी भी वाधा न थी ॥७४-७५॥ स्वयं भगवान जिनेन्द्र के अवतरणेके कारण माता जयश्यामा गर्भ पवित्र था इसलिये उस पवित्र गर्भ के प्रसादसे माता जयश्यामाको सोनेमें सुख मिलता था । रुचि पूर्वक वह भोजन और जल ग्रहण करती थीं उसकी मनोहर चाल थी । बुद्धि सदा निर्मल रहा करती थी एवं वह सुखनींद सोती थीं ॥ ७६ ॥ क्रमसे जब गर्भ के स पूरे हो गये उस समय माता जयश्यामाने माघ सुदि चौथ के दिन जब कि उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र य सुख पूर्वक भगवान जिनेंद्र को जना | बालक रूप भगवान जिनेंद्र तेजके पुंज स्वरूप एवं आकाश में भगवान सूर्य थे । मति ज्ञान श्रुत ज्ञान और अवधिज्ञान रूप तीन ज्ञानके धारक थे। तीनों
AVANANE
Palak