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भिः काचित् स्नानादिना : गाये मातुः सौगंधिमातनोत् ॥ ५२ ॥ पादसंवाहनं काचित्करोतिस्म निरंतरं । काचिद्धं दोलिकारूद्रां रमयामास मातरं ॥ ५३ ॥ काचित्सद्भोजनं कृत्वा व्यंजनोकर संयुतं । भोजयामास सभक्तथारूपलावण्यवर्धकं ॥ ५४ ॥ काचिन्तानारसोपेतं नर्तन गार्भितं । करोतिस्म जिनांयाया सुखसंतान सिद्धये ॥ ५५ ॥ काचिद्र दर्पणं शुभ्र नरदन्तं च निर्मलं । दर्शयामास चातुर्यात्प्रश्न शालां पप्रच्छ का ॥ ५६ ॥ हे मातः ! किमुप्तदेयं संसारे दुःखदे नृणां । गुरूणां वचनं समे : उपादेयं लुकिः ॥ ५७ ॥ के गुरवो च भोजन तैयार कर माताको जिमाती थीं। कोई कोई माता जयश्यामा के सुखपूर्वक संतान हो इस अभिलाषासे उसके आगे नाना प्रकारके रसोंसे व्याप्त मनोहर गाने के साथ आनन्द नाच नाचने लगीं। किसी किसीने माताके सामने मनुष्य के शरीरके समान ऊंचा निर्मल और शुभदर्पण रक्खा और उसे दिखाने लगों एवं कोई कोई माता से इसप्रकार प्रश्न करने लगी
अच्छा माता ! बतावो दुःखोंसे भरे हुए इस संसारमें मनुष्यों को ग्रहण करने योग्य पदार्थ क्या है ? माता उत्तर द ेतीं निर्मन्थ गुरुओंका वचन ही भक्तिपूर्वक संसार में ग्रहण करने योग्य है। प्रश्न- जिनका वचन ग्रहण करने योग्य होता है वे गुरु संसारमें कौन हैं ? उत्तर- जो तस्त्रों का स्वरूप भलेप्रकार जाननेवाले हैं और समस्त प्राणियोंको हित सुकाने वाले हैं। प्रश्न- माता सबसे जल्दी क्या काम संसारमें करना चाहिये। उत्तर-संसार बड़ा दुःख दायी है जहांतक बने
तक सबसे पहले इसका छेदन करना चाहिये । प्रश्न- संसारमें मोक्षका कारण क्या पदार्थ है ? उत्तर -- -- सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान अर्थात् विना सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र के मोक्ष नहीं प्राप्त हो सकती। प्रश्न-माता । संसारमें विद्वानों के लिये पथ्य – हितकारी, चीज क्या है ? उत्तर--स्वर्ग और मोक्षको प्रदान करने वाला धर्म । प्रश्न – संसार में पवित्रपुरुष कौन हैं ? उत्तर- जिसका मन शुद्ध है । प्रश्न- पंडित कौन है ? उत्तर— जो हित और अहितका विवेक रखता है। प्रश्न- विष किसको कहना चाहिये ? उत्तर— निर्मान्ध गुरुओंोंका सत्कार न करना उन्हें घृणा की दृष्टिसे देखना ही हला हल विष है क्योंकि वैसा करनेसे आत्मस्वरूपका तीव्ररूपसे घात
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