________________
आक्षेत्र विक्रिया तेजा अणिमायाप्टमो समौ ॥ १७ ॥ अष्टादश सहस्राबैर्मनसाहारमाहरन् । गतेषु मघमासेषु निःश्वसंलखनावकः। 2 १४८ ॥ गीतादित्रनिषिर्या नाट्या सान्वितैः । रंभारुपावलोकेन युगांतः समयायते ॥ १६ ॥ सप्त धातुमिहीनांगः काममूर्तिः सुरा
धिपः । असंख्यातसमुद्रषु डीपेषु कीलया स्थितः ॥ १५ ॥ धर्मात्स्वर्गीशलक्ष्मीमनुभवति सुरैः सेव्यमानां नितांत । मंगाकल्लोलमाला धवलफरिवरैर्भासमानां सरेनः । कीडाशैलर्षिमान मरकतमणिमिभितरम्यरूपा । धर्माहिक किं दुराप्यं भवति हि.भुषने भूरिधा म्नां नराणां ॥ १५१ ॥ रम्या भोकसुता सुराज्यविभव कीर्तिः कला कौशलं गांभीर्य वनिता विलोचनमुख रूपं च देवेंद्रता । धीधान्यं अठारह हजार वर्षों के बाद वह मनसे आहार ग्रहण करता था और नो महीनोंके बाद उश्वास लेता था ॥ १४८ ॥ सदा होने वाले गानोंसे वाजोंके शब्दोंसे नृत्यकलाके रसोंके अनुभवोंसे और 2 | देवांगनाओंके महा मनोहर रूपोंके देखनेसे सदा उसके लिये सतयुग विद्यमान रहता था ॥१४६॥ हड्डो मजा शक्र आदि सात धातुओंसे रहित उसका शरीर था । कामदेवके समान वह सुंदर
था। समस्त देवोंका स्वामी था एवं असंख्याते द्वीप और समुद्रोंमें सदाक्रीड़ा करने वाला था॥१५०॥ A वह सहसार स्वर्गका स्वामी देवेंद्र जिसकी बड़े बड़े देव सेवा करने वाले हैं, जो गङ्गा नदीको |
तरंगोंके समान सफेद हाथियोंसे शोभायमान हैं बड़े बड़े क्रीड़ा पर्वत, दिव्य विमान और मरकत मणियां जिसकी दिव्य शोभा बढ़ा रहे हैं ऐसी इन्द्र सम्बंधी सम्पदा सानंद भोग करने लगा।
ठीक ही है जो मनुष्य भाग्यवान हैं उनके लिये ऐसी कोई भी चीजें नहीं जो धर्मसे प्राप्त न हो IS जाती हों ॥ १५१ ॥र्म संसारमें ऐसा अद्वितीय चिन्तामणि रत्न है कि उससे महा मनोज्ञ विभू
लियाँ मिलती हैं सुन्दर राज्य, ऐश्वर्य, कीर्ति, कला, कौशल, गम्भीरता स्त्रियां नेत्रोंको आनन्द प्रदान करने वाला रूप, देवोंका स्वामीपना, उत्तम बुद्धि धान्य उत्कृष्ठ और विवेक परिपूर्ण बचन, चक्रवर्ती
पना और तीर्थ करपना सब कुछ प्राप्त होते हैं। विशेष क्या संसारमें ऐसा कोई भी गुणोंका समूह | Dj नहीं जो कि धर्मकी कृपासे प्राप्त न हो ॥ १५२ ॥
प्रपत्रचारपसारस्यका