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विचक्षणः । निर्गमद्वाभगा रम्या वेश्या या रसरा जिताः॥२५॥ मुमुक्षवो विराजते ध्यानस्था वा सत्पधाः। शेलारण्यसरि. सानुनिवासाः साम्यधारिणः ॥२६॥ यत्र सिद्धान्तवाणीभिः पंडितं शक्रःसमं । महापुराभिधं सर्वेशोभाभारभूतं भूश ।। २७ ।।
सप्तकविंशतिभूका रत्नसंरब्ध सत्पधा: । हेमस्तंभा बिराअंते गृहा यत्रैव चित्रिताः ।। २८ ।। उत्तुगतोरणोपेताःस्वर्ण सोपानसत्विषः । म. रत्नच त्याश्च यत्रैव प्रसादाः संति भूदिश: ।।२६।। वृत्तलं यत्र भातीय शिखरं रत्नगर्मितं । नु भानुश्चन्द्रमा किंतु कामायन शेषसन्मणिः है उसीमासार नदियां भी पहियोंके महामनोहर शब्दोंसे व्याप्त थीं । वेश्यायें जिसप्रकार आई मूत्र मार्गकी धारक होती हैं उसप्रकार उन नदियों में भी जल निकलनेके अनेक स्थान विद्यमान थे एवं वेश्या जिसप्रकार अत्यंत मनोहर जान पड़ती हैं उसीप्रकार वे नदियां भी अत्यंत मनोहर जान पड़ती थीं ॥ २४-२५ ॥ वहांपर मोक्षको इच्छा रखनेवालेमुनिगण सदा ध्यानमें लीन रहते थे। उत्तम
मार्ग जैनमार्गके अनुगामी थे। पर्वत वन नदो और पहाड़ोंकी चोटियोंपर निवास करनेवाले थे 1] और परम समरसी भावके धारक थे इसलिये वे उस देशकी अनुपम शोभा स्वरूप थे॥२६॥
उस रम्यकावती देशके अंदर एक महापुर नामका नगर है जिसमें कि विद्वान् लोग सदा जैन सिद्धांतका प्रचार करते रहते हैं इसलिये वह साक्षात् पंडित स्वरूप है । शोभामें इन्द्रपुरीकी तुलना
करता है एवं सदा अनेक प्रकारकी शोभाओंसे हरा भरा रहता है ।। २७ ॥ महापुर नगरके घर सत लखने वा इकवीस खने तकके बने हुए हैं। लोगोंके प्रवेश करनेके मार्ग रत्नमयी हैं। सुवर्णमयी
तंभोंके धारक हैं एवं जगह जगह अनेक प्रकारके चित्रोंसे शोभायमान हैं ॥२८॥ महापुरके निवासी पनियोंके घर ऊंचे ऊंचे तोरणोंसे व्याप्त थे । सुवर्णमयी सोपान-झीनोंसे देदीप्यमान थे और न रलमयी स्तंभोंसे चम चमाने वाले थे ॥ २६ ॥ इन प्रासादोंकी गोलाकार और और रत्नोंकी बनीं | शिखरे अत्यंत शोभायमान थीं सो ऐसी जान पड़ती भीं मानो ये साक्षात् सूर्य हैं वा चंद्रमा है। थवा कामदेवके कमल हैं वा शेष नागके मस्तककी उत्तम मणि हैं ॥३०॥ उन प्रासादोंके ऊपर
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पाणपत्र
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