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सुलक्षणं । दर्शयामास भूय दृष्ट्वा भूपो ननंद सत् ॥ २६३ ॥ अन्यदा कन्यकास्तिरुः संप्राप्य चित्रकारकं । विचित्रत्याद्विहस्यैव माहुरेवं चचोवरं ॥ २६४ ॥ भो भो त्वं चेलिनीरूपं नग्नं चित्रय शीघ्रतः । चित्रितं तेन सह पं गुह्यस्यैस्तिलकेयुतं ॥ २६५ ॥ कर्णे जपं केनापि प्रो' निधौ । देवानामपि दुर्लक्ष्यं गुप्तं जानात्ययं कुतः ॥ २६६ ॥ श्रुत्वा महेयया राजा चुकाप भ्रमसंगतः । तदा शशः प्रकोषेण नष्टोऽसौ चित्रद्वरात् ॥ २६७ ॥ गत्या राजगृहे रम्येऽदर्शयत् श्रेणिकाय तत् । दृष्ट्वा रूपं तदा राजा चित्रार्पित वा भवत् ॥ २६८ ॥ स्वस्थो भूत्वा पप्रच्छति कस्य रूपमिदं चण । अनुकूलं नृपं ज्ञात्वाऽचीकधत् शृणु वादरात् ॥ २६६ ॥ सिंधुदेश जो कि चित्रकला के गुणोंसे युक्त थी तथा महाराज चेटकको दिखाई जिसे देख राजा चेटक भरत की चित्रकला की बढ़ी प्रशंसा करने लगे । २६१ - २६३ ।। किसी दिन ज्येष्ठा आदि तीनों कन्य ये मिलकर चित्रकार भरतके पास गईं एवं एक विचित्रप्रकारकी हंसी हँसकर इसप्रकार उससे कहने लगीं
चित्रकार ! हम जन तुम्हारी चित्रकलादिकी निपुणता समझें जब तुम कुमारी चलनीक नग्नरूप शीघ्र चित्रित कर दो। चित्रकार भरतको यह बात कोई कठिन न थी, देखते देखते उसने चित्र बनाकर तयार कर दिया एवं महाविद्याके प्रभावसे जो भी वलनीके गुप्तस्थानोंमें तिल आदि चिह्न थे सब उस चित्रमें अङ्कित करदिये ॥ २६४ -२६५ ॥ संसार में चुगल खोरोंकी कमी नहीं वेलनीका वह नग्नचित्र देखकर एक चुगलखोर शीघ्र राजा चेटकके पास पहुंचा और यह कहने लगा - राजन् ! च ेलनीके गुह्य स्थानोंके चिह्नोंको देव भी नहीं देख सकते उन्हें यह आपका चित्रकार कैसे जानता है ! यह बड़ी विचित्र बात है ॥ २६६ ॥ चुगुलखोरकी यह बात सुन राजा चेटकको भी भरतपर संदेह हो गया इसलिये वह विनाही विचारे प्रबल ईर्षासे कुपित हो गया । राजा hatar पता चित्रकार भरतको भी लग गया। मारे भयके वह एकदम कपगया और शीघ्र ही राजगृह नगरके लिये रवाना हो गया। राजगृहमें जाकर कन्या चेलिनीका चित्र महाराज श्रेणिक को दिखाया जिसे देख वे चित्राम सरीखे निश्चल हो गये ॥ २६७ - २६८ ॥ कुछ देर बाद स्वस्थ
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